यादें तो आ रही हैं मगर वो नहीं आते ,
लौटे नहीं वो क्यूँ जो बिछड़ के चले जाते ;
लौटे नहीं वो क्यूँ जो बिछड़ के चले जाते ;
मुद्दत हुई उन्हें नहीं देखा है इसलिए ,
रह रह के हमको अब ये उजाले भी सताते ।
रह रह के हमको अब ये उजाले भी सताते ।
मआलूम है आएँगें नहीं वो किसी सूरत ,
हर वक़्त मगर दिल से उन्हें हम हैं बुलाते ।
हर वक़्त मगर दिल से उन्हें हम हैं बुलाते ।
बढ़ जाएँ न बेचैनियाँ बेहद इस डर से ,
दुन्या मे लग लग के यादों को सुलाते ।
दुन्या मे लग लग के यादों को सुलाते ।
इस मोड़ पे ले आया हमें अब तेरा जाना ,
अपनी ही हम लाश को दिन-रात उठाते ।
अपनी ही हम लाश को दिन-रात उठाते ।
【टुकड़ा-टुकड़ा डायरी/06 नवम्बर 2018】
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