मंगलवार, 20 मार्च 2012

दो कदम

1,
न उम्मीद से
चूल्हा फूँका जा सकता है
न इच्छाओ की रोटी
बनाई जा सकती है ..
हो यह सकता है कि बस
दोनों की चटनी बनाकर
चाट ली जाए ....
2,
आग उगलते सूरज
और इच्छाओं की
जलती सूखी लकडियो से
निकलती लपटों में
मेरे साथ
सचमुच कोइ बैठना
नहीं चाहता ..
और गर
चाहता भी है तो बस
घी डालना ...

शनिवार, 17 मार्च 2012

इश्क

मेरा और उसका नाम
आज भी खुदा होगा वहां
जहां जुदा होने से पहले
कुरेदी थी ज़मीन..........
और लम्बी चुप्पी के बाद
तन्हाई ने बाहे फैला कर
धीरे से बुदबुदाया था
इश्क .....
वहां खुदा होगा एक पूरा इतिहास ..
क्योकि इश्क की बदकिस्मती है
की वो 'खुदा' ही होता है...