सोमवार, 30 मार्च 2009

जैसे माँ का आँचल

तुम्हारा निर्मल स्नेह
मेरे तपते हुए जीवन को
बर्फ सी ठंडक देता है,
मै थोडा शांत होकर
अपने 'होने' के भाव को
महसूस करने लगता हूँ।
तुम्हारे शब्द सुमन
मेरे रेगिस्तानी पथ पर
मखमली गलीचे का
निर्माण करते है,
और दूर होने के बावजूद
लक्ष्य के करीब होने का
अहसास होने लगता है।
तुम्हारा दिया गया
अप्रत्यक्ष मान- सम्मान
इस भीड़ भरी
स्वार्थी दुनिया में
मस्तक को गर्व से
ऊंचा उठाने में
टेका देता है,
और दंभ से भरा
आकाश मेरे कदमो में
लिपटने लगता है।
एक सच कहू-
तुम्हारा व्यवहार
और तुम मेरे लिए
ठीक वैसी हो
जैसे माँ का आँचल।

शनिवार, 28 मार्च 2009

ह्रदय से धन्यवाद

अपने माता-पिता के पास था, इसलिए संसार से दूर था॥
आज ही लौटा हूँ, ब्लॉग देखा, अपने आदरणीय, प्रिय, मित्र, स्नेही, शुभचिंतक और कुछ नए पाठको ने अपना स्नेह बनाये रखा है, जो मेरे लिए सोभाग्य की बात है।
मै अपने ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ, और उम्मीद करता हूँ आप सबका स्नेह बना रहेगा। सुधीर, vijay kumaar, प्रवीण त्रिवेदी, sandhya guptaji , shyamkoriji, अनिल कान्तजी ,समीर सृज़नजी , ब्रजमोहन श्रीवास्तवजी ,कुमार धीरज, हेम पांडेजी, विनीता यशस्वी ,रंजनाजी, आदि सभी का आभारी हूँ जो आपने समय निकाल कर मेरी रचना पढ़ी और अपनी टिप्पणिया दी।
विशेषरूप से गौतम राज ऋषिजी , दिगंबर नासवाजी का ब्लॉग पर आना मेरे लिए हमेशा से ही सुखद अनुभूति रही है। और हां प्रिय काजल का मेरे शब्दों के संग सफ़र अलग ही अहसास दिलाता है। सबका आत्मीय आभार। आप सबका प्रेम बना रहे यही कामना है।

बुधवार, 4 मार्च 2009

मै सुख चुरा लाया हूँ

जिन्हें प्रतीक्षा रहती है मेरे शब्दों की, उन्हें समर्पित -

" बडी मुश्किल से
दुःख को सुला आया हूँ,
तुम्हारे लिए
कुछ सुख चुरा लाया हूँ।

ग़मगीन रात में
चांदनी बिखेरता ये चाँद क्यो हंस रहा है?
लो प्रिये , उसकी मुस्कुराहट उधार लाया हूँ।

तुम्हारे लिए कुछ सुख चुरा लाया हूँ।

यकीन करो मै
उम्रभर काँटों के बीच जूझता रहा,
आज एक गुलाब खिला लाया हूँ।

तुम्हारे लिए कुछ सुख चुरा लाया हूँ।

मुझे पता नही
प्रेम का इजहार कैसे होता है?
जो दिल में था वो उगल आया हूँ।

तुम्हारे लिए कुछ सुख चुरा लाया हूँ।

है हाथ तुम्हारे
पतवार मेरी मासूम जिन्दगी की ,
मै नाव बीच मझधार छोड़ आया हूँ।

तुम्हारे लिए कुछ सुख चुरा लाया हूँ
बड़ी मुश्किल से दुःख को सुला आया हूँ। "