सोमवार, 17 जून 2019

पेड़ पर लिपटी

पेड़ पर लिपटी
ये जो लता है
पीड़ा इसकी
कौन समझता है ।
दिखती सुंदर 
सजी धजी ये
पर अंदर गहरी
उदासीनता है।
【टुकड़ा टुकड़ा डायरी /19 जनवरी 2019】

दुःख की कविताएं

दुःख की कविताएं 
गर दुःख में हुई होती तो 
कितना सुख मिलता।
खैर..
सुख में रची गई कविताएं
भिन्न भिन्न प्रकार के
दुःख देती हैं।
तब वे कविता कम
रचना ज्यादा हो जाती है।

छुट्टियां खत्म..

छुट्टियां खत्म..
खालीपन भी भरा होता है
एक ऐसे अहसास से जो शब्द नहीं पाते
जो बस होते हैं।
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उनके आने की बाट जोहने
और उनके आने के बाद
जो भरे भरे होने का अहसास होता है
वो उनके लौटने पर राई के माफिक बिखरता है।
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सबकुछ आवश्यक है
इस सत्य को धारण कर रहना
जैसे सीने पर सौ मन का पत्थर ढोना।
वाकई सत्य कठोर होता है।
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वो सदा खुश रहे
दुआएं, प्रार्थनाएं और
सतत चिंताओं के मध्य
फोन घनघनाते रहना
संतुलित होने का उपक्रम भर होता है।
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छुट्टियां
खत्म होने के लिए ही क्यों होती है?
(बेटी जब घर आती है )