उनके लिये
किसी दूसरे के इमोशंस
अब कोई महत्व नहीं रखते .
अच्छा है यह .
पहले की बात और थी ,
हम भी कमाऊ थे
और व्यस्त थे ..
थोडा बहुत नाम था ,
प्रतिष्ठा थी ..
अब ऐसा कुछ नहीं है
तो वे भी अब अपनी तरह की ही जिंदगी जीते हैं .
उन्हे फिक्र क्यो रहेगी अब ?
बहानो और निजी मुसीबतो से
रिश्ते साधे रखने की यह कला
आखिर कितने दिनो तक जिंदा रह सकती है ?
सामने वाला कोई अनजान या
जिसे कुछ फहमीया हो ही न
ऐसा थोडी न है .
वह भी इंसान है
और ठीक आपकी तरह ही ,
शायद आपसे अधिक
जिंदगी के कठिन पथ पर
वो सफर कर रहा है
जहाँ अगर वो चाहता तो
कबका आपको पीछे छोड
निकल जाता
क्योंकि उसके लिये
आपके होने का मतलब ही
सिद्ध नहीं होता .../
जब आपकी जरुरत होती है
तब आप हमेशा गायब होते है..
और जब आपको उनकी जरुरत होती है
तो पूरा पूरा समय आप लेते हैं उनसे ...
और अगर कुछ हुआ तो अपनी शिकायत,
अपना गुस्सा या
अपनी बात को इस कदर रखते हैं कि
मानो दोष उनका ही हो ...
अब तो कुछ ऐसा है कि
वे खास दिन भी आप
भूल चुके होते हैं
जिनसे जिंदगी के थकाऊ पलो में
राहत की बयार चलती
महसूस हुआ करती है .
क्यो है ऐसा ?
क्योंकि जिंदगी के रास्ते बदल चुके हैं....
एक ओर
जिंदगी गुलशन है
तो दूसरी ओर उजाड ....
हम उजाड के बाशिंदे
आप हवाओ में बहने वाले ....