रविवार, 31 मार्च 2013

शेर सरीखे टुकड़े

यूं तो मेरे सपने सुहाने बहुत है 
और नाकामियों के बहाने बहुत है
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मुझे अपने रकीब से ईतलाफ़ है 
वो अपने मकसद में तो साफ़ है 
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बाते बहुत है तन्हाई की गहरी 
वल्लाह क्या शीरीं जबान ठहरी
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मंगलवार, 19 मार्च 2013

सोचो तो यार ............


तुम हजार बहाने बना लो/
चाहे मुझे कारण बना लो 
किन्तु 'हमारे' लिए 
यह उचित नहीं माना जा सकता /
इसके बावजूद 
 मुझे कोइ 
शिकवा नहीं है /

बस ये जो सिगरेट है न 
इश्क के फेफड़ो में 
धुँआ धंस रही  है /

पर मुझे कोइ गिला नहीं /

सिगरेट पीना 
चारित्रिक पतन का 
लेशमात्र भी संकेत नहीं देता /
हां , इसे आदत कहते है /
आदत बदलने के लिए भी 
मै नहीं कहता/
मै सिर्फ यह कहता हूँ कि 
सिगरेट पीकर 
खुद को अस्वस्थ करने की इस  प्रक्रिया में 
महज तुम दुःख नहीं उठाओगी 
तुम्हारे 'हम' ज्यादा उठाएंगे /
और अगर इश्क का मामला है तो 
वो दुःख तो नहीं दे सकता न ..../
सोचो तो यार ............

शुक्रवार, 1 मार्च 2013

मै हूँ यह क्या कम है

बैठो तो दो पल ..

देखो सूखे इस वृक्ष को 
जिस पर खिले है सिर्फ फूल /

अब मुझे देखो ..


क्यों मेरी नाकामी से परेशा हो
मै हूँ यह क्या कम है /

(पलसधरी की एक शांत दोपहर और मेरे कैमरे में कैद यह अद्भुत वृक्ष )