बुधवार, 9 अगस्त 2017

लोकार्पण


सभागृह में गहमागहमी थी।  डायस को सुमित ने संभाल रखा था। मंच पर अतिथि आ चुके थे।  कुछ साहित्यकार, कुछ साहित्यकार टाइप के लोग , कुछ पत्रकार और कुछ दोस्त-यारों से श्रोतागण सज्जित थे। 
''ये प्रेम कहानी है।  सिर्फ एक आदमी की कहानी। सिर्फ एक प्रेम की कहानी। ताज्जुब हो सकता  है कि उसे  जिस लड़की से प्रेम है , वो लड़की उससे प्रेम नहीं करती है। ये एक सामान्य  सी घटना हो सकती है।  किन्तु सामान्य नहीं है। असामान्य इसलिए कि वो जानता है कि लड़की उससे प्रेम नहीं  करती है और न ही कर सकती है।  वो जानता है कि उसकी उम्र इतनी है कि जोड़ी बेमेल है। वो जानता है कि वो खुद एक विवाहित व्यक्ति है। और उसके बारे में ये सब लड़की भी जानती है।  इसके बावजूद उसे प्रेम है। इसलिए कि उसके प्रेम की परिभाषा में न तो ये लिखा है कि प्रेम आप तभी कर सकते हैं जब आप हमउम्र हों , न ये लिखा है कि प्रेम आप तभी कर सकते हैं जब आप विवाहित न हो , और न ये लिखा है कि प्रेम आप तभी कर सकते हैं जब आपको भी कोई लड़की चाहे। उसकी डिक्शनरी में प्रेम सिर्फ एक से ही हो , ऐसा भी नहीं लिखा है। ये भी लिखा है कि जरूरी नहीं कि आपको  जिससे प्रेम हो वो  आपको भी  प्रेम करे। वो मानता रहा कि प्रेम आत्मिक अनुभव है।  प्रेम मीरा है। और ताज्जुब ये भी है कि जिस लड़की से वो प्रेम करता है , वो उस पर हंसती है।  उसकी उम्र और उसका विवाहित जीवन देख सोचती है कि ये पागल है। जबकि वो खुद किसीसे प्रेम करती है।  वो जिससे प्रेम करती है , वो भी उसे दिलोजान से चाहता है।  दोनों में प्रेम है। किन्तु इसके प्रेम और उसके प्रेम में फर्क करती है तो इसलिए कि उसके प्रेम के मापदंड पर वो खरा नहीं उतरता है। मज़ा ये है कि प्रेम का खरापन हो या कोई मापदंड जैसा विषय , खरा तो वो ही है , क्योंकि वो सबकुछ जानकार भी उससे बेइंतेहा प्रेम करता है। इसलिए भी नहीं कि  उसे पा लिया जाए।  बल्कि इसलिए कि उसे बस प्रेम है।  वो जानता है कि उसे खोना ही खोना है। खोना - प्रेम के साथ चिपका ऐसा तत्व है जिसने सदियों से प्रेमियों को मारा है। मरना ही प्रेम है। प्रेम में आप पा कुछ भी नहीं सकते।  और यदि पाने के लिए प्रेम करते हैं तो ये प्रेम हो ही नहीं सकता। दरअसल प्रेम में तो  कोई चाहत ही नहीं होती । वह तो पूरा खाली होता है।  शून्य। शून्य सिर्फ शून्य है।  आगे-पीछे लगा लेने से अंको पर प्रभाव जरूर पड़ सकता है किन्तु वो शून्य ही है। निच्छल। पवित्र और एकदम खरा। हास्यास्पद स्थिति ये है कि इसके बावजूद वो पाप का भागीदार है और जिसे वो लड़की प्रेम करती है वह प्रेम पुण्यवान।  कैसे ? जबकि उसके प्रेम में लालच है , देह का आकर्षण है। एक  चाहत है।  चाहत प्रेम नहीं होता , इसे स्पष्ट कर लेना चाहिए उन तमाम प्रेमियों को जो इस शब्द के साथ प्रेम को लपेटते हैं। हाँ , तो वो जिस लड़की को प्रेम करता है उस लड़की के अपने प्रेम में एक भविष्य का सपना है। और विवाह करने का एकमात्र प्रेम परिणाम है। ये पाठको को सोचना है कि प्रेम आखिर होता क्या है ? जिसमे कोई अपेक्षा हो या वो जिसमे कोई अपेक्षा न हो ,जो निरापद हो। जो निर्गुण , निराकार हो। सिर्फ प्रेम। और कुछ भी नहीं .... ''  
श्रोताओं में फुसफुसाहट भी है।  किसीने धीरे से कहा - 'लेखक सचमुच पागल है।'  
'चुपचाप बैठिये और सुनिए।'  पास बैठे सज्जन ने जवाब दिया। वो महोदय फिर सुमित की बातें सुनने लगे।  
''उसे ज्ञात है कि जिससे प्रेम है वो उसे नहीं मिल सकती। और सबसे बड़ी बात तो ये है कि वो इसलिए उससे प्रेम करता भी नहीं कि वो मिले।  प्रेम में मिलना हो , जरूरी नहीं। प्रेम में सौदा हो , जरूरी नहीं।  प्रेम में सिर्फ प्रेम हो..... '' 
'अजी श्रीमान लेखक सचमुच या तो पागल है , या मूर्ख। जब कोई उससे मिलना ही न चाहे , जब किसीको उससे प्रेम ही न हो तो ऐसे प्रेम का क्या अर्थ ? ये तो  बेवकूफी है , अपने समय का व्यय है।' उस महोदय को सुमित की समीक्षा शायद रास नहीं आ रही थी , उससे रहा नहीं गया और खड़े होकर बोलने लगा। 
''एक्जैक्टली।''  सुमित ने कहा - ''ये किताब बेवकूफी से भरी है। समर्पण से भरी है।  त्याग से भरी है।  मूर्खता से लबालब है।  क्योंकि  लेखक प्रेम करता है।  क्योंकि लेखक दर्शाना चाहता है कि प्रेम में मांग नहीं है। प्रेम ऐसी पूजा है , ऐसी साधना है जो बस प्रेम के लिए है...... " 
'दरअसल श्रीमान , प्रेम में जब तक दो मन एक न हो तब तक प्रेम का परिणाम क्या है? ' महोदय ने सुमित की और देखते हुए पूछा।  मंच पर अब हलचल है।  सबकी निगाहें उस महोदय पर थी।  सुमित ने किताब के पन्ने खोलते हुए कुछ पढ़ा और कहा - ''ये संभव है कि ऐसे प्रेम से प्रेम हो तो जीवन का सबसे गहरा अनुभव पात्रों को प्राप्त हो सकता है किन्तु ये भी सच है प्रेम द्वैत नहीं। अद्वैत है। और जिसने इसे जाना-समझा  वो उसमे ही मग्न रहा।  डूबा रहा और या तो कबीर हो गया , या मीरा ... '' 
'धत्त ...  ऐसे कबीर और ऐसी मीरा से क्या लाभ ?' उस व्यक्ति ने कहा और धम्म से अपनी कुर्सी पर बैठ गया।  
सुमित ने अपनी बात जारी रखी - '' प्रेम यदि लाभ देखता हो तो कैसा प्रेम ? यकीनन दुनिया में निच्छल  प्रेम को पाप कहा जाता है , दुर्गुण माना जाता है , दोषी करार दे दिया जाता है। जबकि प्रेम होना किसी भी प्रकार से गलत नहीं है , तब तक जब तक कि वो किसीको कोई हानि नहीं पहुंचा रहा है। तो दोस्तों, प्रेम की इस अद्भुत किताब का आज लोकार्पण करते हुए इसलिए भी हर्ष है क्योंकि ये हम सब को प्रेम में होना सिखाती है। प्रेम करना नहीं।''  
'लेखक से कुछ सवाल करने है , वो उपस्थित क्यों नहीं हुए।  और वो जिस लड़की से प्रेम करते हैं , उस लड़की  की क्या प्रतिक्रया है। क्या इस किताब में लिखी गयी है या सिर्फ कहानी ही है। ' फुसफुसाहट के मध्य एक आवाज आई।  
सुमित ने कहा - ''दरअसल लेखक उपस्थित नहीं है।  और आप शायद आश्चर्य करेंगे कि इस किताब का लेखक पुरुष नहीं है , बल्कि एक स्त्री है। और ये जो स्त्री है वही वो लड़की है जिसके पात्र को उससे प्रेम है। आप किताब पढ़ेंगे तो पाएंगे कि उसका पुरुष पात्र अब इस दुनिया में नहीं है। और ये उसी लड़की द्वारा लिखी कहानी है जिसने अपने सुपात्र को खोया है और एक अलौकिक प्रेम से वंचित रही है। '' 
एक लम्बी सांस छोड़ते हुए सुमीत ने बुदबुदाते हुए कहा - ''सच्चे प्रेम में आखिर होता ही क्या है? यही न।'' 
अब सभागृह सन्नाटे में डूबा हुआ है। 
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गुरुवार, 13 जुलाई 2017

वो हैं तो सब है

चित्र -कैट एम 



















वो हैं 
इसलिए अहसास नहीं है कि 
जिनके पास नहीं उनका दुःख कैसा।

वो हैं 
इसलिए है सारा गुस्सा ,
जिद और इच्छाएं ।

ज़रा पूछ भर लेना 
जिनके पास नहीं है 
उनके गुस्से का प्रभाव है भी या नहीं ?
उनकी जिदो का अर्थ है भी या नहीं ?
उनकी इच्छाएं पूरी होती भी है या नहीं ?

वो हैं 
इसलिए दिए जाते हैं दुःख उन्हें 
इसलिए  रूठ जाया जाता है 
इसलिए अपनी चाह मनवाने के लिए 
पीड़ा पहुंचाई जाती है 
और वो हैं 
इसीलिये तुम हो , छाहँ है 
तुम्हारी सारी चाहते हैं 
मान है मनौव्वल है। 

जिनके पास नहीं है 
ज़रा पता करना 
कौन पूछता है उनसे 
इतने प्यार से कि 
भूखा है -कुछ खा ले ...

वो हैं इसीलिये 
अपनी जिद , 
अपने गुस्से , 
अपने अहंकार , 
अपने रौब , 
अपने सारे दर्द -दुःख देने वाले कृत्य 
अपने सही होने के प्रमाण देते हैं। 

वो नहीं होंगे तो 
कौनसा आधार रह जाएगा ?
कौन तुम्हारे गुस्से 
तुम्हारी जिदो और 
तुम्हारी बेतुकी हरकतों को सहन करेगा ?

रात जब अकेले हो तो 
अपने सारे बेवक़ूफीभरे विचारों को परे रख 
उनके न होने के अहसास की कल्पना करना 
क्षणभर ही सही। 

फिर तुम सही हो या न हो 
जो चाहे मान लेना। 

स्मरण रखें 
मां-बाप के रहते ही तुम बच्चे हो 
बड़ो और बूढ़ो को पूछता कौन है। 

शनिवार, 1 जुलाई 2017

बारिश तो उन दिनों होती थी

बारिश से मचा कीचड़ मखमली था उन दिनों..
उन दिनों फ़िक्र नहीं थी कि
कीचड से सने कपडे धुलते कैसे हैं या
मां नहलाती कैसे हैं ?
फ़िक्र नहीं थी कि आसमान भले बरसता हो
किन्तु नगर पालिका का नल नहीं बहता है ।
उन दिनों पूरा मोहल्ला भीगता था ..
लोहे की पतली छड़ जमीन में धंसती थी
और हमारी किलकारियोँ के बीच एक खेल संपन्न होता था।
उन दिनों स्कूल की नोट बुक के पन्ने
नावों की शक्ल में कैसे आते थे
और मास्टरजी की डपट से लेकर
शिकायत घर तक कैसे पहुँचती थी
ज्ञात नहीं था।
उन दिनों बारिश भी होती थी
नदी नाले पुर होते थे।
शहर के बाहर बने पुल के ऊपर से बहता पानी देखने भागना
और घर में माँ की चिंता पर सवार
बारिश में पसीना बहाते पिता के ढूंढने निकलने की फ़िक्र किसे थी ?
उन दिनों टपकती छत किसी फव्वारे से कम नहीं लगती थी
घर में घुसा पानी परेशानी का सबब भी होता था। कौन जानें।
'उन दिनों' वाले वो दिन अब नहीं हैं ...
अब बारिश और देह के बीच
रेन कोट या छाते जैसी दीवार है।
मजबूत छतो पर बरसते पानी का कोई संगीत नहीं है।
पुल तो है , पुल पर से पानी भी बहता है
किन्तु न दौड़ है , न भागना है।
दफ्तर में बैठे खबरों का संसार है
खबरों में ही बारिश है।
इतना सब व्यस्थित है कि
उन दिनों वाली अव्यवस्था की स्मृतियाँ चुभ चुभ बार बार
अहसास दिलाती है कि
बारिश उन दिनों ही होती थी
इन दिनों तो बस बहती है।
स्मृतियाँ जैसे बहकर उन दिनों तक पहुंचती है
झूला झूलती है
और चुपचाप लौट आती है
सूखे सूखे घर में....
कुछ भी तो भीगा नहीं है अब तक
उम्र की इस प्रौढ़ावस्था बारिश में
मन और स्मृतियों के अतिरिक्त।