पलको से टकरा-टकरा
आखिर लुढक ही गई
आंखों के अन्दर
और
रैटीना में फैल गई
अपने पूरे विस्तार के साथ
मेरी तस्वीर।
मैं कुछ समझ पाता कि
उसने पलक बन्द कर
निगल लिया मुझे
ह्रदय के अंतरतम तक
और बुदबुदाई
अब तुम जा सकते हो।
मैं
दुनियाई बवंडर में
उलझा
अपने दायित्व, कर्म
धर्म निभाता
लगभग बूढा हो गया,
वो कभी याद नहीं आई,
क्योकि उसे कभी
भूला ही नहीं।
फिर यह विश्वास कि
मैं तो उसके
ह्रदय में ही हूं।
सोच बुदबुदाता हूं
वाह रे समर्पण।
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
4 दिन पहले