बुधवार, 25 दिसंबर 2013

दीवारे हैं, दीवारें ही दीवारें हैं

दीवारें ही दीवारें है 
मेरे अंदर/
कोइ दरवाजा नहीं /
चौखट / भूलभुलैया /
पूरी देह अपने मन और आत्मा के साथ 
बंदी है /

बाहर जाने की उत्कंठा
संसार देखने की ललक
हरी भरी वादियों में
दौड़ लगाने की इच्छा
घंटो गपशप /
घंटो बेफिक्री
न कोइ भय
न ही कोइ अज्ञात भय /

बस
सोचता हूँ
चाहता हूँ
लिखता हूँ
पढता हूँ
दीवारों के अंदर /

दीवारों में
विश्वासघात है
धोखा है
आदमी को अकेला कर
तालियों की गूँज है/
और बस कर्णभेदी इस
गूँज में चलती -धड़कती
डरती -कांपती साँसे हैं /
जो दीवारों से टकराती हैं
लौटती है और धंसती रहती है मुझमें /
प्रतिक्षण /

क्योंकि चारों तरफ
दीवारे हैं, दीवारें ही दीवारें हैं /

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

तिकड़ी

1, तुम्हें जो प्रेम था मुझसे / 
इतना कि बस्स... / 
किधर है ? 
अब मैं ढूँढने लगा हूँ /

2, प्रेम 
विशेष दिन ज्यादा 
उमड़ता है /
विशेष दिन 
विशेष न रह जाएँ तब ?
शायद इसलिए 
आजकल मुझसे 
छूती नहीं हवा उनकी /

3,सारी बातें,
तब ज्यादा खोखली होने लगती है 
जब जरुरत पर 
वे काम नहीं आती /

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

देखना मुझे

मौके की तलाश में हूँ , देखना मुझे 
तुम्हारे ही शहर में हूँ, देखना मुझे /

कद -पद के मद में कुछ दीखता नहीं
श्रेष्ठ तुम सबसे हूँ , देखना मुझे/

संकटों में भी और मजबूत बना हूँ
भ्रम में हो के गिर गया हूँ, देखना मुझे/

दर्द आज है तो क्या कल भी रहेगा
गर्द है ये , मर्द हूँ मैं, देखना मुझे/

हुनर के भाग्य में देर ही लिखी है
मिटा इसे रहा हूँ कर्म से, देखना मुझे/

रो के ही जीता नहीं 'अमिताभ' कभी भी
हंसकर ही बला टालता हूँ , देखना मुझे/

शनिवार, 20 जुलाई 2013

इज्जत

अलगनी पर लटका 
कमीज़, 
न न आदमी की इज्जत 
झूल रही है/ 
फरका रही है/

खुशबूदार सर्फ़ के झाग से
गंदे, मैले , कुचले कमीज को
खूब धो-पछीट के धो लिया गया है /

काले , मटमैले और बदबूदार पसीने युक्त
पानी को नाली के हिस्से बहा ,
निचोड़ कर
खुली हवा में
फिर लटका दिया गया है
सूखने , चमकने /

बुधवार, 8 मई 2013

अ -हम

तुम 
जब तक तुम रहोगे ,
मै 
जब तक मै ,
तब तक 
'ह' और 'म' के बीच 
फासला बना ही रहेगा /

अजीब गणित है दोस्त 
रिश्तो के अहम् (अ -हम ) का 
यह व्याकरण में मत देखना 
न ही भाषा में तलाशना /

रविवार, 31 मार्च 2013

शेर सरीखे टुकड़े

यूं तो मेरे सपने सुहाने बहुत है 
और नाकामियों के बहाने बहुत है
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मुझे अपने रकीब से ईतलाफ़ है 
वो अपने मकसद में तो साफ़ है 
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बाते बहुत है तन्हाई की गहरी 
वल्लाह क्या शीरीं जबान ठहरी
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मंगलवार, 19 मार्च 2013

सोचो तो यार ............


तुम हजार बहाने बना लो/
चाहे मुझे कारण बना लो 
किन्तु 'हमारे' लिए 
यह उचित नहीं माना जा सकता /
इसके बावजूद 
 मुझे कोइ 
शिकवा नहीं है /

बस ये जो सिगरेट है न 
इश्क के फेफड़ो में 
धुँआ धंस रही  है /

पर मुझे कोइ गिला नहीं /

सिगरेट पीना 
चारित्रिक पतन का 
लेशमात्र भी संकेत नहीं देता /
हां , इसे आदत कहते है /
आदत बदलने के लिए भी 
मै नहीं कहता/
मै सिर्फ यह कहता हूँ कि 
सिगरेट पीकर 
खुद को अस्वस्थ करने की इस  प्रक्रिया में 
महज तुम दुःख नहीं उठाओगी 
तुम्हारे 'हम' ज्यादा उठाएंगे /
और अगर इश्क का मामला है तो 
वो दुःख तो नहीं दे सकता न ..../
सोचो तो यार ............

शुक्रवार, 1 मार्च 2013

मै हूँ यह क्या कम है

बैठो तो दो पल ..

देखो सूखे इस वृक्ष को 
जिस पर खिले है सिर्फ फूल /

अब मुझे देखो ..


क्यों मेरी नाकामी से परेशा हो
मै हूँ यह क्या कम है /

(पलसधरी की एक शांत दोपहर और मेरे कैमरे में कैद यह अद्भुत वृक्ष )