गुरुवार, 29 जनवरी 2009

हां में हूँ ना

उसकी कोमल उंगलियों ने

पहली बार

जब मेरे चेहरे को छुआ

मानो टटोलकर विश्वास किया

अपने पापा के होने का।

हां , में हूँ मेरी बेटी

तुम्हारा पापा।

गोद में उठा

कंधो पर बिठा

पीठ पर मुझे घोडा बना ,

उंगलियों को पकड़ कर

वो दोड़ती हुई

समय के रथ पर सवार होकर

अपने संसार में कब प्रवेश कर गई

मुझे नही पता चला,

में तो उसकी रुकावटों को,

आने वाली बाधाओं को

अपने जवान हाथो से

दूर करता हुआ

कब बूडा हो गया

नही पता।

अब

अपने कमजोर हाथो से

उसके चहरे को

टटोलता हूँ

और अहसास पाता हूँ

उसके होने का ,

'बेटी' है वो

इसलिए कहती है

हां में हूँ ना, मेरे पापा

तुम्हारे पास।

सोमवार, 26 जनवरी 2009

गणतंत्र दिवस पर

देश में आज ये कैसा मंज़र है
चारो तरफ रेगिस्तान ओर ज़मीं बंज़र है
दुश्मनों की बात तो छोडिये जनाब
दोस्तों के हाथो में भी अब खंज़र है।

सोचने में क्या बुराई है?

'आम' से 'ख़ास' होना
कोई बड़ी बात नहीं
'ख़ास' में 'आम' जैसे हो
एसा बड़ा कोई नहीं ।
अपनों के बीच से उठ कर
अपनों से अलग हो जाना,
अपना संसार रचने का
यह केवल भ्रम तो नहीं?
बड़े पदों का ये दिखावा
जमा भीड़ का झलावा
भाई खेल ये महज
कुर्सी का तो नहीं?
आग उगलता सूरज
भी अस्त होता है
पूनम के बाद क्या चाँद
अमावस में निकलता नहीं?
ओर जो भूल बैठा है
माता- पिता को अपने
क्या उसके बच्चे
कभी बड़े होते नहीं?
रह न जाता स्थिर कुछ
उम्र भी गुजरती है
जवान दिल भी क्या
बूडा होता नहीं?
छोड़ दे इतराना
क्या रखा है इसमें
ख़ाक में मिलना है
क्यों याद आता नहीं?

शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

आज मेरे 'राम' की बात

राम दोहे

राम नाम रटते रहो,rakh कर आत्मविश्वास
छोड़ दो उस पर अपनी, सारी जीवन आस॥
अपने नित्य कर्मो को, करो पूजा मान,
राम को समर्पित हो, सारे मान सम्मान॥
सुख दुःख के भंवर से , होना हो अगर पार,
राम नाम के जाप को, बनाओ अपनी पतवार॥
माया मोह के बंधन से मुक्त होना हो आज,
लेकर नाम राम का, बुलंद करो आवाज़॥
बही खातो में डूब कर, हुआ जीवन व्यर्थ
बिना राम के जाप से होना हे अनर्थ॥
राम राम बस राम हो, मेरे चारो ओर
कृपा करो, थाम लो मेरी जीवन डोर॥
जगत के झमेलों में क्यों उलझा रहता मन
सुलझा लो जीवन अपना करके राम आराधन॥
मे तो चाहू राम को, ओर ना चाहू कुछ,
एसा भाव बना ज्यो, मिल जाए सब कुछ॥
राम का सर पर हाथ हो, हो राम छत्र छाया,
फिर भला किस काम की ये सांसारिक माया॥
ह्रदय में राम रस निरंतर बहता रहे,
ओर मुख सिर्फ राम नाम कहता रहे॥
एसा विश्वास ठोस हो, तो बन जाए बात,
राम राम श्री राम राम जपते रहो दिन रात॥

बुधवार, 21 जनवरी 2009

सुप्त ज्वालामुखी



समय ओर समाज की

परतो में

दबा प्रेम

मज़बूरी की कार्बनयुक्त

काली चट्टानों

के बीच कराहता है।

किन्तु उसके

कराहने की आवाज़

प्रेम के फिर से प्रस्फुटित

होने के लिए

कोई सूराख

बना नहीं पाती।

आंसुओ का लावा

पिघल कर

अन्दर ही अन्दर

सूखता जाता है।

जम जाती है

स्मृतियों की गंधक।

जिम्मेदारिया दायित्व

ओर सांसारिक बन्धनों

के बीच खडा हुआ

ये पर्वत

अब कभी ज्वालामुखी नहीं

बन सकता ,

क्योकि

इसे सुप्त कर दिया गया है।

चुपचाप

इस जगत में सड़ने के लिए।

शनिवार, 17 जनवरी 2009

विजेता



''संघर्ष में तप कर


है जो निखरता


होता वही है


असली विजेता । ''

जो पंक्तिया मुझे अच्छी लगती है

''चलते चलते रास्ते में मिल गई
सुरा लिए शाम
अच्छा भाई सूरज , राम राम ..... ''
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''अश्रु था हृदय में आँखों पर न आया
शब्द थे मन में , फडके न होठो पर''
----------निशीथ

रविवार, 11 जनवरी 2009

आज भी है



सर्द मौसम की
ठिठुरती रात में
गर्म सांसो के
अलाव का
वो अहसास
आज भी है।
सूरज की
तपन के बीच
मिलन की प्रतीक्षा
वेदी पर
श्रावण की बूँद की
आस
आज भी है।
जहा थामा
हाथ छुडा कर
दूर हुई थी तुम
वही जस का तस् है
पड़ा प्रेम विश्वास
आज भी है।

शुक्रवार, 9 जनवरी 2009

फिजूल

फिजूल में
जुटे होते है हम
बैल की तरह ।
पूरी जिंदगी
इसका- उसका
तेरा- मेरा
करते रहते है ।
मन का हुआ
तो खुशी
न हुआ तो गम ...
ओर सबकुछ
टिका होता है
दूसरो के व्यवहारों से ॥
पाने- खोने की
लालसा में ।
बस...
फिजूल में ही.....

गुरुवार, 8 जनवरी 2009

अफ़सोस

फ़िर अफ़सोस .....
वो न मेरा हुआ
कौन किसका हुआ
सब हुआ तो
पराया हुआ
पूरा , समग्र जीवन भी
कंहा अपना हुआ
हुआ तो मृत्यु का हुआ
ओंर .....वह भी
कंहा किसकी हुई
फ़िर जीवन हुआ.....

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उलझन
हिसाब - किताब
कितना ,
गणित
ओंर समीकरण
बस उलझन
पूरा जीव

---------

वो

वो उसका
चुपके से आना
गली में मिलना
रोना- हँसना
बातें करना
वक़्त फे साथ
बिसर गया
बिसर गया
समग्र प्रेम संसार
सिमट गया
चार दीवारी में
समाज का पंछी बन
आजादी के अतीत को
याद करते हुए
पूरा जीवन
अब
पिंजरे में फडफडाते रहना
मिलने को तरसना
सिर्फ़ रोना
वक़्त के साथ
पसर गया

बुधवार, 7 जनवरी 2009

बिटिया



बिटिया मेरी

जीवन का शगुन है

जेसे कृष्ण की

बंशी से बजती धुन है

याद

माता पिता की याद आती है बिल्कुल बच्चो की तरह बच्चा तो हूँ ही बड़ा पद या प्रतिष्ठित व्यक्ति बन जाने पर आदमी बड़ा हो जाता है क्या? वो भी अपने माता पिता के लिए ? मेरी उम्र का अन्तर आज भी उतना ही है जब में पैदा हुआ था आज भी उनकी उंगलियों को पकड़ कर ही चलना होता है फर्क बस यह है की उंगलियों का मतलब बदल कर अनुभवों से हो गया है सच में खूब याद आती है

मेरी इस याद को लेकर कई है जो मुझे नादाँ समझते है कुछ तो हँसते भी है मगर उनके समझने न समझने से मुझे क्या? मुझे तो आज भी लगता है की पिता की सर पर छत्रछाया हो ओर माँ की गोद में सर हो , उनके हाथो की थपकियों से जो सुख रिसता है वो इस संसार के सुखो से भिन्न है एसा सुख जिसे पाने के लिए इश्वर भी लालायित रहता हे पैसा, ऐश्वर्य... क्या सुख असल में दे पाते है? सच तो ये है की ख़रीदा गया सुख भी कोई सुख होता है

आज बहुत याद आ रही है मन करता है भाग कर उनके पास चला जाऊ उनके आँचल में अपने आप को समां दू

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मंगलवार, 6 जनवरी 2009

माँ

माँ
थक गया हूँ मै
तेरी गोद जैसी जगह ,
उन थपकियों का अहसास
ओर कानो मै लोरी की वो मधुर ध्वनी
इस शहर मै नही मिलती
यंहा तो मेरी छोटी जिदो का भी कोई अस्तित्व नही
माँ ...............................

सोमवार, 5 जनवरी 2009

मंथन



" क्या होता है
जो सारे दूर हो जाते है ?
सुख जो अपने है
वो गुम हो जाते है
मंथन तो है ही जीवन
विष पीने वाले ही
शंकर हो जाते है "
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सम्बन्ध

संबंधो में संपर्क
की जरुरत क्या ?
गर जरुरत है तो
फ़िर सम्बन्ध क्या ?

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रविवार, 4 जनवरी 2009

खुदा


"क्यो अक्सर मोहब्बत
जुदा होती है ?
शायद इसीलिए
वो खुदा होती है "

शुक्रवार, 2 जनवरी 2009

गुरुवार, 1 जनवरी 2009

रोटी

रोटी के टुकड़े के लिए
दौड़ता बच्चा
लड़खडा कर गिर जाता है
और
वह टुकडा
एक कुत्ता पा जाता है
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रोजगार

जिसके भरोसे पर
बूडे माँ बाप है
वह हर
दर भटकने के बावजूद
बे रोजगार रह जाता है
खूबसूरत सी महिला
जिसके लिए जीवन एक फैशन है
रोजगार उसे
मिल जाता है
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प्रेम
गर प्रेम में पाना होता
तो पा जाता
किंतु फ़िर
आंसुओ का
स्वाद कैसे मिल पाता