उसकी कोमल उंगलियों ने
पहली बार
जब मेरे चेहरे को छुआ
मानो टटोलकर विश्वास किया
अपने पापा के होने का।
हां , में हूँ मेरी बेटी
तुम्हारा पापा।
गोद में उठा
कंधो पर बिठा
पीठ पर मुझे घोडा बना ,
उंगलियों को पकड़ कर
वो दोड़ती हुई
समय के रथ पर सवार होकर
अपने संसार में कब प्रवेश कर गई
मुझे नही पता चला,
में तो उसकी रुकावटों को,
आने वाली बाधाओं को
अपने जवान हाथो से
दूर करता हुआ
कब बूडा हो गया
नही पता।
अब
अपने कमजोर हाथो से
उसके चहरे को
टटोलता हूँ
और अहसास पाता हूँ
उसके होने का ,
'बेटी' है वो
इसलिए कहती है
हां में हूँ ना, मेरे पापा
तुम्हारे पास।