मेरे चारो ओर फैले हैं
सन्त, महात्मा, साधु
संन्यासी, बाबा, बुद्ध ,ज्ञानी,महाज्ञानी आदि इत्यादि।
जीने की सीख और ढेर सारी बौद्धिक बातों से भरे प्रवचनमुखी।
दिखावे में परमहंस की तरह
किन्तु न सरल हैं और न ही सहज।
जिन्हें भी छूना चाहा वो कड़ा
जिसमें भी बहना चाहा वो सूखी नदी
जिसमें डूबना चाहा वो गहरे अँधेरे बिनपानी कुएं सा।
सब के सब स्टिरियोस्कोपी की तरह
थ्री डी भ्रम पैदा करने वाली फिल्में हैं
जिनका सत्य एक सख्त, सपाट और काली दीवार भर है।
जरा जरा सी बात पर उखड़ना
जरा जरा से सत्य पर बिखरना,
जरा जरा से लिखे पर प्रतिक्रिया
सब जरा जरा से किन्तु
स्वयं को सिद्ध पुरुष या
सबकुछ जान समझने वाले नेस्त्रादमस साबित करने व करते रहने की होड़ में लथपथ।
मुझे लगता है अब इस ठिकाने कोई बच्चा नहीं रहा
सब बड़े जन्म ले रहे हैं।
【जित देखा तित पाया जगत महाबड़ों】
5 nov 2019