शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

सुंदर,विचित्र,अद्भुत

जिनमें न नाक कटने की जलन है
और न ही रीढ़ झुका लेने का दर्द।
वैसे भी
गीली लकड़ियाँ कहाँ जल पाती है
फिर वो चाहे पानी से गीली हों या अश्रुओं से नम।

झुकना पड़ता है कुछ पाने को
सम्मान-पुरस्कार या ओहदा
ये कोई आसमान है जो
मस्तक ऊंचा कर ही छुआ जा सकता है?
वैसे भी वहां शून्य है।

तुम्हारी लौकिक बातें
संसार जीतने के षड्यंत्र या तुम्हारी भाषा में इसे कहूँ तो उपाय,तरीके, नुस्खे
कड़ी मेहनत, संघर्ष से प्राप्त करने जैसे प्रवचन
दरअसल मकड़ी के जाले भर हैं शिकार के लिए।
तुम सब मकड़ी हो।
सुंदर,विचित्र,अद्भुत।

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