शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

और ये अच्छा है।

मैं सड़कों पर रेंक रहे गदहों
चीख रहे मूर्खों
और उन्हें हांक रहे
लोगों के खुश और हंसते चेहरों में
पिशाचों की आकृतियां देख रहा हूँ।
मैं देख रहा हूँ उन दानवों को
जिन्होंने माया रची है।
इंसानों के भेष में देवताओं की भूमि पर
नँगा नाच मचा कर जो
तमाम स्थिरता और सौहार्दभरे आलम को
अस्त व्यस्त कर देना चाहते हैं।
मैं देख रहा हूँ
उस विपक्ष को जिसे शान्ति की अपील करनी चाहिए
वो इस आग में अपने बुद्धिजीवियों संग
घी बनाने में जुटा है।
मैं जो देख रहा हूँ वो मुझ जैसे करोड़ों लोग देख -समझ रहे हैं या होंगे ..
और ये अच्छा है।

(20 dec2019)

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