दुःख की कविताएं गर दुःख में हुई होती तो कितना सुख मिलता। खैर.. सुख में रची गई कविताएं भिन्न भिन्न प्रकार के दुःख देती हैं। तब वे कविता कम रचना ज्यादा हो जाती है।
ये वो समय था जब चारों दिशाएं मुट्ठी में थीं सारे ग्रह -नक्षत्र नाक की सीध में थे और धरा जैसे अपनी कनिष्ठा पर घूम रही थी।
यकीन जानो माता-पिता संग ब्रह्माण्ड की समस्त महाशक्तियां एकत्रित होकर वास करती है देह में और निस्तेज जान पड़ता है इंद्र का सिंहासन अप्रभ होता है उसका फैला साम्राज्य।
इसलिए प्रिये जितना सम्भव हो सके जगत के समस्त प्रपंच त्याग कर रह लो साथ जनक - जननी के कि ईश्वर भी इस सुख से अधिक वंचित ही रहा है।
उस वक्त जब महानगर दूर हुआ करते थे चाँद की तरह तब मैंने धरती छोड़ी थी। इस तथ्य को नकारते हुए कि हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती। --- उबड़ खाबड़ आक्सीजन रहित उपग्रह के लिए जीवन के एकमात्र ब्रह्माण्डी स्थल को त्यागना इसरो या नासा का कोई अनुसंधान कार्य नहीं था। वो टिमटिमाते स्वप्न को पकड़ने का दुस्साहस मात्र था। ---- हाँ, ये सच है अँधेरी रात में चमक दमक करते असंख्य तारों को देख लोग मोहित अवश्य होते हैं किन्तु अंनत ब्रह्माण्ड के शून्य में खोए हुए तारों का अकेलापन ,सूनापन कोई नहीं जानता जिनका अपना कोई प्रकाश भी नहीं होता। लौटना चाहता था मैं ये जानकर कि दौड़ लगाने से आसमान छुआ नहीं जाता बल्कि पेड़ बना जाता है अपनी जड़ों पर खड़ा। ---- अट्टाहास करता है देव जीवन के रेगिस्तान में बनी लिप्साओं की मारीचिकाएं देख भागते दौड़ते मानव के आसमान से ऊपर निकल जाने को देख कि वो जानता है लौटना कठिन होता है भटक जाना होता है बस घूमते रह जाना यहाँ वहां और इस बात से अनजान कि कब कोई ब्लैकहोल सा दानव एक सांस में निगल जाएगा। ----
मोर से आकर्षक सुनहरी दुम वाले हरे,नीले बैंगनी रंग से लिपे पुते किन्तु बड़े मुंह और भूखे पेट वाले होते हैं वर्ष। राख से जन्मे। इनका हाजमा इतना दुरुस्त होता है कि जीवन के जीवन लील जाते हैं और इतने नकटे कि जरा भी शिकन नहीं।
बावजूद खूँटी पर टाँगे जाते हैं फीनिक्स के 365 सिर।
रुको, ये जली हुई धरती का उज्जडपन राक्षसी नहीं बल्कि ये काला टीका बन बुरी नज़र से बचाता है। और यकीन मानो जंगल नहीं होते जंजाल घबराओ मत, आओ, गहरे उतरो ,छाती पर चढ़ बैठो अँधेरे की कि बस कुछ देर बाद ही सूरज आसमान के सिर पर होगा और तुम्हारा घर साफ दिखाई देगा।
जब दुनिया गहरी नींद सोती है, तब किताबें मेरा साथ निभाती हैं...
गाती है, गुनगुनाती है, किताबें जीना सिखाती हैं..
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मिलती है जब, कुछ मौज़ औ' कुछ मस्ती
कृपा उस ईश की, जो हम पर् है बरसती
आपके आशीर्वाद
" जिनके चरणों मे झुका ये शीश है, पिता ही मेरे गुरु, मेरे ईश हैं,है ये सौभाग्य मेरा कि मेरे,कदम-कदम उनके आशीष हैं.. " ( सालों पुरानी ये तस्वीर है, इस तरह की यह एकमात्र तस्वीर)
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लम्बा जीवन मुंबई के कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में पत्रकारिता को दे डाला। दूरदर्शन के लिये ढेर सारी डाक्यूमेंट्री लेखन के अलावा आकाशवाणी मुम्बई के ;खेल पत्रिका; कार्यक्रम का लगातार 3 साल तक संचालन , दूरदर्शन के लिये ही दो-तीन धारावाहिक लेखन जिनमे करगिल युद्ध के बाद बनाया गया 'वीरो तुम्हे सलाम' सबसे बेहतरीन । फिलवक्त पठन और लेखन। व्यस्त रहने को सबसे बडा सुख मानता हूं। रह कर देखें..मज़ा आयेगा।