बुधवार, 9 जनवरी 2019

ब्लैकहोल

उस वक्त जब
महानगर दूर हुआ करते थे
चाँद की तरह तब
मैंने धरती छोड़ी थी।
इस तथ्य को नकारते हुए कि
हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती।
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उबड़ खाबड़
आक्सीजन रहित उपग्रह के लिए
जीवन के एकमात्र ब्रह्माण्डी स्थल को त्यागना
इसरो या नासा का कोई अनुसंधान कार्य नहीं था।
वो टिमटिमाते स्वप्न को पकड़ने का दुस्साहस मात्र था।
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हाँ, ये सच है
अँधेरी रात में चमक दमक करते असंख्य तारों को
देख लोग मोहित अवश्य होते हैं
किन्तु अंनत ब्रह्माण्ड के शून्य में खोए हुए तारों का अकेलापन ,सूनापन कोई नहीं जानता जिनका
अपना कोई प्रकाश भी नहीं होता।
लौटना चाहता था मैं
ये जानकर कि दौड़ लगाने से आसमान छुआ नहीं जाता
बल्कि पेड़ बना जाता है
अपनी जड़ों पर खड़ा।
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अट्टाहास करता है देव
जीवन के रेगिस्तान में बनी लिप्साओं की मारीचिकाएं देख
भागते दौड़ते मानव के आसमान से ऊपर निकल जाने को देख कि वो जानता है
लौटना कठिन होता है
भटक जाना होता है
बस घूमते रह जाना यहाँ वहां
और इस बात से अनजान कि
कब कोई ब्लैकहोल सा दानव
एक सांस में निगल जाएगा।
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【टुकड़ा टुकड़ा डायरी/8 जनवरी 2019】

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