शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

न कभी होगा.

जबकि इस धरती पर
तमाम मुद्दे आदमी को
रुला-हंसा और जिला-मरा रहे हैं
आदमी इसी सबको अपना
जीवन मानकर धन्य धन्य हो रहा है
ठीक इसी वक्त
अंतरिक्ष में उसका भगवान
उल्कापिंड पर बैठा चक्कर मार रहा है।
वो घूर कर देख रहा है
मगर आदमियों को नहीं
पूरी धरती को
कि धरती उसका भोजन है..।
आदमी उसे 'गड़बड़ का भगवान' मान रहा है
आदमी उसे 'एपोफिस' बोल रहा है।
आदमी उसे 'दैत्य' कह रहा है।
पर वो नहीं जानता आदमी किस्म की किसी प्रजाति को
वो भगवान है जिसे धरती से मतलब है
और धरती इस अंनत ब्रह्माण्ड का एक छोटा सा टुकड़ा भर
जिसके लिए मुंह भी नहीं फाड़ना पड़ता किसी दैत्य या भगवान को
बस एक फूंकभर धक्का देना होता है कि काम तमाम।
एक हम छोटे छोटे
दो हाथ पैरों के जीव
पता नहीं किसे पाने के लिए
किस पर जीत के लिए
किसे खाने या खत्म करने के लिए
आपस में लड़ते हैं-मरते हैं
इस धरती के उस टुकड़े के लिए
जो हमारा न कभी था, न कभी होगा..

(25 nov 2019)

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