मंगलवार, 20 मार्च 2012

दो कदम

1,
न उम्मीद से
चूल्हा फूँका जा सकता है
न इच्छाओ की रोटी
बनाई जा सकती है ..
हो यह सकता है कि बस
दोनों की चटनी बनाकर
चाट ली जाए ....
2,
आग उगलते सूरज
और इच्छाओं की
जलती सूखी लकडियो से
निकलती लपटों में
मेरे साथ
सचमुच कोइ बैठना
नहीं चाहता ..
और गर
चाहता भी है तो बस
घी डालना ...

11 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गहन और यथार्थ बात ... अच्छी प्रस्तुति

kshama ने कहा…

Aah!

यशवन्त माथुर (Yashwant Raj Bali Mathur) ने कहा…

कल 22/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Bhawna Kukreti ने कहा…

wah..:)

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच कहा है जलती में हर कोई घी डालता है ... बुझाने बहुत कम मिलते हैं ... सामाजिक रीत को शब्द दिए हैं आपने ...

Pallavi saxena ने कहा…

यथार्थ का आईना दिखती गहन अभिव्यक्ति....

Saras ने कहा…

वाह ! तल्ख़ सच्चाई

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

अद्भुत अभिव्यक्ति...

Nidhi ने कहा…

सच है...घी डालने वाले बहुत मिलते हैं.

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सार्थक और गहन अभिव्यक्ति....

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

वाह !!!!!!!!!!!!!!!