सोमवार, 2 जुलाई 2018

उम्र बूँद बूँद

माथे के उपर
भिनभिनाते सत्य को तुम
मच्छर उड़ाने की भांति
हाथों से झटकते, भगाते ,उड़ाते रहते हो
कि कहीं डँस न ले ..
आहा,
जीवन कितना भोला है
नासमझ है , नादान है
कि जैसे मिला तो मिल ही गया।
तुम मानो या न मानो प्रिये !
अमृत कलश में जरूर
छोटा सा छिद्र है
रिसती है जहाँ से उम्र बूँद बूँद ।

2 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

उम्र तो रिस जाती है बूँद बूँद बस एहसास रहता है जो बूढा नहीं होने देता ...
प्रेम का एहसास भी क्या चीज़ है ...

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

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