माथे के उपर
भिनभिनाते सत्य को तुम
मच्छर उड़ाने की भांति
हाथों से झटकते, भगाते ,उड़ाते रहते हो
कि कहीं डँस न ले ..
भिनभिनाते सत्य को तुम
मच्छर उड़ाने की भांति
हाथों से झटकते, भगाते ,उड़ाते रहते हो
कि कहीं डँस न ले ..
आहा,
जीवन कितना भोला है
नासमझ है , नादान है
कि जैसे मिला तो मिल ही गया।
जीवन कितना भोला है
नासमझ है , नादान है
कि जैसे मिला तो मिल ही गया।
तुम मानो या न मानो प्रिये !
अमृत कलश में जरूर
छोटा सा छिद्र है
रिसती है जहाँ से उम्र बूँद बूँद ।
छोटा सा छिद्र है
रिसती है जहाँ से उम्र बूँद बूँद ।
2 टिप्पणियां:
उम्र तो रिस जाती है बूँद बूँद बस एहसास रहता है जो बूढा नहीं होने देता ...
प्रेम का एहसास भी क्या चीज़ है ...
आपका आना ही मेरे ब्लॉग का सार्थक हो जाना है
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