वक्त देना जीवन का सबसे बड़ा तोहफा होता है। कौन किसे वक्त देता है अपना ? इस जूझती, दौड़ती, भागती दुनिया में जो ये लोग आपस में मिलते जुलते , गलबहियां डाले दीखते हैं उनकी पीठ पर चिपकी होती हैं लालसाएं, लदे होते हैं स्वार्थ के बोरे, किसी न किसी काम के साए में होती है मीटिंग्स। मिलते सब हैं मगर वक्त नहीं देते , वक्त लेते हैं।
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-तुम मिलोगे?
-हाँ, पक्का ।
-सच में?
-हाँ।
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कितनी सारी योजनाएं बनती है । दिमाग में मिलने के लिए दौड़ते हैं बहाने, जीवन के मकड़ जालों से कुछ देर बाहर निकलने की उत्सुकता और सालों साल बाद मिलने के क्षण को न गंवा देने की अथक कोशिशें। ये मिलन वक्त का सबसे शुद्ध मिलन माना जाता है जिसमे कोई स्वार्थ नहीं ,सिर्फ मिलने की उत्कंठा और उस सुख को पुनः जीवित कर देना जो कभी जिंदगी के खेल में दफ़्न हो चुका था।
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ज्यादा देर तो हम साथ नहीं रह सकते किन्तु मिलना जरूरी था, पता नहीं अब कब मुलाकात हो ...!
हाँ, इस बीच कितना कुछ बदल गया....उम्र चढ़ आई चेहरों पर ...
मगर जो ठहरी हुई मित्रता थी वो आज भी तो वैसी ही हरी हरी है ...है न ..
मैंने कुछ बहाने बनाए हैं ..कुछ बहाने घर पहुंच बनाने होंगे।
लंच साथ में करने का वादा था...लो वो पूरा भी हुआ।
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इधर उधर की बातों ने मिलने के थोड़े से निकले वक्त को फुर्र से उड़ा दिया और अब अपने अपने रास्ते जाना है ..ये सच किसी भी स्नेहात्मक सम्बन्धो का सबसे कठिन किन्तु अटल सच होता है। कौन किसे आज ऐसा वक्त देता है भला ...
जरा अपना हाथ बढ़ाओ...
कलाई पर एक घड़ी बाँध दी गई ।
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वक्त पर वक्त को ढालने वाली भेंट, वक्त को फ्रेम में जड़ कर स्मृतियों की दीवार पर टांगने वाली भेंट..ये ही असल पूँजी होती है दोस्त ...बाकी जीवन में कुच्छ भी न धरा ...
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-तुम मिलोगे?
-हाँ, पक्का ।
-सच में?
-हाँ।
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कितनी सारी योजनाएं बनती है । दिमाग में मिलने के लिए दौड़ते हैं बहाने, जीवन के मकड़ जालों से कुछ देर बाहर निकलने की उत्सुकता और सालों साल बाद मिलने के क्षण को न गंवा देने की अथक कोशिशें। ये मिलन वक्त का सबसे शुद्ध मिलन माना जाता है जिसमे कोई स्वार्थ नहीं ,सिर्फ मिलने की उत्कंठा और उस सुख को पुनः जीवित कर देना जो कभी जिंदगी के खेल में दफ़्न हो चुका था।
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ज्यादा देर तो हम साथ नहीं रह सकते किन्तु मिलना जरूरी था, पता नहीं अब कब मुलाकात हो ...!
हाँ, इस बीच कितना कुछ बदल गया....उम्र चढ़ आई चेहरों पर ...
मगर जो ठहरी हुई मित्रता थी वो आज भी तो वैसी ही हरी हरी है ...है न ..
मैंने कुछ बहाने बनाए हैं ..कुछ बहाने घर पहुंच बनाने होंगे।
लंच साथ में करने का वादा था...लो वो पूरा भी हुआ।
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इधर उधर की बातों ने मिलने के थोड़े से निकले वक्त को फुर्र से उड़ा दिया और अब अपने अपने रास्ते जाना है ..ये सच किसी भी स्नेहात्मक सम्बन्धो का सबसे कठिन किन्तु अटल सच होता है। कौन किसे आज ऐसा वक्त देता है भला ...
जरा अपना हाथ बढ़ाओ...
कलाई पर एक घड़ी बाँध दी गई ।
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वक्त पर वक्त को ढालने वाली भेंट, वक्त को फ्रेम में जड़ कर स्मृतियों की दीवार पर टांगने वाली भेंट..ये ही असल पूँजी होती है दोस्त ...बाकी जीवन में कुच्छ भी न धरा ...
बस्स अपनों को वक्त दो !
- टुकड़ा टुकड़ा डायरी /28जुलाई2018