तुम्हे पता है
जिससे प्रेम होता है
वही दूर हो जाता है ?
जिससे प्रेम होता है
वही दूर हो जाता है ?
देखो चाँद भी
धरा से कितना दूर है
और भी दूर होते जा रहा है।
कभी धरा के गले लगा था
आज विरह गीत गुनगुनाता है।
धरा से कितना दूर है
और भी दूर होते जा रहा है।
कभी धरा के गले लगा था
आज विरह गीत गुनगुनाता है।
कितना अजीब है न ये प्रिये
कि प्रेम के दुश्मन अरबो वर्ष पहले भी थे
कोई साढें चार अरब पूर्व क्यों आया था थिया?
धरती से टकरा कर चाँद को छीन ले गया।
और तब से अब तक कितने ही चकोरों को
बस ताकते रहने के लिए छोड़ गया ।
कि प्रेम के दुश्मन अरबो वर्ष पहले भी थे
कोई साढें चार अरब पूर्व क्यों आया था थिया?
धरती से टकरा कर चाँद को छीन ले गया।
और तब से अब तक कितने ही चकोरों को
बस ताकते रहने के लिए छोड़ गया ।
इसलिए इश्क मत करना ,
करना भी है तो
जुदाई में रोना मत। समझी।
करना भी है तो
जुदाई में रोना मत। समझी।
(चन्द्रमा का वैज्ञानिक पक्ष पढ़ते रहने में भी दिख जाती है उसकी कोमल परतें , गजब है चाँद भई )
2 टिप्पणियां:
एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ लिखी बहुत सुंदर कविता. एक अलग सोच एक अलग नजरिया पेश किया है अमिताभ जी आपने इस कविता के माध्यम से. बधाई स्वीकारें.
प्रेम फिर भी कहाँ कम होता है ... दूरी उसे और बढ़ा देती है ...
खूबसूरत घ्वाब सी रचना अमिताभ जी ...
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