उदासी में बोझिल ही हुआ जाता है ऐसा नहीं है।
ऐसा नहीं है कि प्रेमी निर्मोही न हो।
निराशाएं तोड़ती हों
असफलताएँ धैर्य खो देती हों
और आदमी किसी काम का न हो
ऐसा नहीं है।
बहुत कुछ है जो 'ऐसा नहीं है '
फिर क्यों इल्ज़ामात
कि तुम ऐसे हो , वैसे हो , कैसे हो ?
जैसा है , वह उसके होने का
उसके अस्तित्व का
उसके अपने ईश्वर का होना है
और उसे पूरे का पूरा स्वीकारना ही आदमीयत है।
शायद ।
ऐसा नहीं है कि प्रेमी निर्मोही न हो।
निराशाएं तोड़ती हों
असफलताएँ धैर्य खो देती हों
और आदमी किसी काम का न हो
ऐसा नहीं है।
बहुत कुछ है जो 'ऐसा नहीं है '
फिर क्यों इल्ज़ामात
कि तुम ऐसे हो , वैसे हो , कैसे हो ?
जैसा है , वह उसके होने का
उसके अस्तित्व का
उसके अपने ईश्वर का होना है
और उसे पूरे का पूरा स्वीकारना ही आदमीयत है।
शायद ।
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