मंगलवार, 26 मई 2015

ब्लैक होल

तुमने मेरी असफलताओं को
ब्लैक होल की संज्ञा दे दी
अच्छा ही किया।
जानते हो न
कि 
ब्लैक होल कोई छेद नहीं है।
यह तो मरी हुई इच्छाओं के वे अवशेष हैं
जो टूट चुके तारों की तरह जमा हैं।
और पता है ?
किसी सुपरनोवा की तरह चमकते हुए ख़त्म हुआ था मैं।
न न ख़त्म हुआ भी कहाँ ?
अस्तित्व कब किसीका मिटा है ?
हाँ यह जरूर है कि अब न कोई आयतन है
न आकार , रूप -रंग ,
किन्तु अनंत घनत्व के साथ
तुम्हारे अंतरिक्ष के तमाम
चाँद-तारे-सूरज और असंख्य पिंडो को
अपनी ओर खींचने का माद्दा है मुझमे।
ब्लेक होल तो ऐसे ही होते हैं।
( अंधड़ से फड़फड़ाते डायरी के पन्नों की आवाज भी कभी कभी कोई राग दे जाती है )

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