शनिवार, 3 नवंबर 2018

लड़ न सका

मैं विधाता से लड़ न सका
जबकि लड़ना था ।
उसने पेश की थी चुनौती
और ललकारा था मुझे।
मैं अब तक की पूजा पाठों के
मायाजाल में ऐसा लिप्त रहा कि
उसकी शक्ति का प्रतिकार तक नहीं कर पाया।
ये उसका ही तो भ्रमफन्दा था जो
मेरे गले में पड़ा और मैं
उसके विधान को स्वीकार कर उसे ही पुकारता रहा।
इस उम्मीदों पर कि
धरती के देव चिकित्सक बचा लेंगे पिता को।
ये युद्ध था
जो मैं लड़े बिना हार गया ..
कितने लड़े बिना हार रहे हैं..
(टुकड़ा टुकड़ा डायरी /02 सितंबर/2018)

कोई टिप्पणी नहीं: