फूल ऋतुओं को अपने सौंदर्य में समेट लेते हैं ..जैसे हरसिंगार शरद को अपनी आगोश में भींच लेते हैं। ये मौसम हरसिंगार का है, शरद के श्रृंगार का। कांच सा आकाश और उस पर तैरते बादल के टुकड़े। ऐसा लगता है जैसे मानसून में उधम मचाने वाले काले -मटमैले मेघों को नहला धुला कर प्रकृति ने टांक दिए हों आकाश में..धवल -साफ़ सुथरे किसी राजा बेटा के माफिक। और सूरज भी गोया उनके माथे पर प्यार से हाथ फेरते हुए -धरती को शीतलता का अहसास दिलाता है। शरद ऋतु चाँद का भी मौसम है। वो सजता है,सँवरता है और मीठी सी किरणों को धरती पर भेजता है ताकि नव रात्र हो ..दीप जलें और मन आत्मा किसी झिलमिलाती झील सा तरल हो कर, पिघल कर बह चले, झूम उठे, खिलखिला उठे, चहक उठे ...
शिशिर के स्वागत में सजते संवरते इस मौसम का अपना मन है-कभी तेज धूप तो कभी सर्द पवन को लपेट कर उतरती सूर्य रश्मियां ..कभी यज्ञ सी तो कभी होम की गई चंदन की महक सी अनुभूत होती हैं..जो धरती से लेकर पुण्यात्माओं के लोक तक को सुवासित करती हैं । मुझे ये ऋतु आकर्षित करती है सिर्फ उन 15 दिनों को छोड़ कर जिसे श्राद्ध पक्ष कहते हैं। इन दिनों में एक अजीब सा सूनापन है..उदासी और बोझिल मन सा महसूस होता है। सूरज भी तपता है, उमस भी होती है..हवा भी शांत ,स्थिर और हृदय भी बैठा बैठा सा लगता है। प्रकृति और मान्यताओं के मध्य भी कितना सामंजस्य है ये शरद के दिन स्थापित करते हैं।
बहरहाल, मेरे घर के बाहर ही हराभरा सा हरसिंगार का पेड़ है। रातभर उसके फूलों की महक मन मस्तिष्क को अपने जादू में रखती है ..गुलजाफरी का ये आलम मदमस्त बनाए रखता है। सुबह जब मैं उसके फूल चुनता हूँ तो लगता है जैसे कोई मंत्र चुन रहा हूँ..जिसकी आध्यात्मिक महक है और शायद इसी वजह से ईश्वर को भी ये बेइंतेहा पसंद है....दरअसल न केवल ये फूल अपनी जादुई खुशबू से मुग्ध करते हैं बल्कि आयुर्वेद ने भी इन्हें प्रमुखता दे रखी है जो मन के अतिरिक्त तन के लिए भी स्वास्थ्यवर्धक माने जाते हैं। सचमुच हरसिंगार के फूलों का ये शरद मौसम दिलकश है..और शायद यही वजह भी है कि साहित्य ने इस ऋतु को अपनी कलम की नोंक पर रखा है ..
शिशिर के स्वागत में सजते संवरते इस मौसम का अपना मन है-कभी तेज धूप तो कभी सर्द पवन को लपेट कर उतरती सूर्य रश्मियां ..कभी यज्ञ सी तो कभी होम की गई चंदन की महक सी अनुभूत होती हैं..जो धरती से लेकर पुण्यात्माओं के लोक तक को सुवासित करती हैं । मुझे ये ऋतु आकर्षित करती है सिर्फ उन 15 दिनों को छोड़ कर जिसे श्राद्ध पक्ष कहते हैं। इन दिनों में एक अजीब सा सूनापन है..उदासी और बोझिल मन सा महसूस होता है। सूरज भी तपता है, उमस भी होती है..हवा भी शांत ,स्थिर और हृदय भी बैठा बैठा सा लगता है। प्रकृति और मान्यताओं के मध्य भी कितना सामंजस्य है ये शरद के दिन स्थापित करते हैं।
बहरहाल, मेरे घर के बाहर ही हराभरा सा हरसिंगार का पेड़ है। रातभर उसके फूलों की महक मन मस्तिष्क को अपने जादू में रखती है ..गुलजाफरी का ये आलम मदमस्त बनाए रखता है। सुबह जब मैं उसके फूल चुनता हूँ तो लगता है जैसे कोई मंत्र चुन रहा हूँ..जिसकी आध्यात्मिक महक है और शायद इसी वजह से ईश्वर को भी ये बेइंतेहा पसंद है....दरअसल न केवल ये फूल अपनी जादुई खुशबू से मुग्ध करते हैं बल्कि आयुर्वेद ने भी इन्हें प्रमुखता दे रखी है जो मन के अतिरिक्त तन के लिए भी स्वास्थ्यवर्धक माने जाते हैं। सचमुच हरसिंगार के फूलों का ये शरद मौसम दिलकश है..और शायद यही वजह भी है कि साहित्य ने इस ऋतु को अपनी कलम की नोंक पर रखा है ..
【टुकड़ा टुकड़ा डायरी, 10 सितंबर 2018】
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