शनिवार, 3 नवंबर 2018

काश

काश
कास भी तुम्हारे
केशो पर सजता..
और मैं शरद सा
मोहित हो जाता ..
पिंगल हो उठता सूर्य हमारा
क्लेश ,दुःख, दर्द
जल भस्म हो जाते सारे।
हो जाता जीवन आकाश निर्मल
खिल जाते
मन सरोवर कमल...
किन्तु कास तो काश ही ठहरा मन का
केशों पर थोड़े सजता है।
दूर दिखता
और बस छलता है
प्रेम आस की तरह।
(9 sep 18)

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