काश
कास भी तुम्हारे
केशो पर सजता..
और मैं शरद सा
मोहित हो जाता ..
कास भी तुम्हारे
केशो पर सजता..
और मैं शरद सा
मोहित हो जाता ..
पिंगल हो उठता सूर्य हमारा
क्लेश ,दुःख, दर्द
जल भस्म हो जाते सारे।
क्लेश ,दुःख, दर्द
जल भस्म हो जाते सारे।
हो जाता जीवन आकाश निर्मल
खिल जाते
मन सरोवर कमल...
खिल जाते
मन सरोवर कमल...
किन्तु कास तो काश ही ठहरा मन का
केशों पर थोड़े सजता है।
केशों पर थोड़े सजता है।
दूर दिखता
और बस छलता है
प्रेम आस की तरह।
और बस छलता है
प्रेम आस की तरह।
(9 sep 18)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें