सोमवार, 4 मई 2015

सच कहना

तुमने सुख और शान्ति को गढ़ा 
दिया नहीं, दे सकने का भ्रम रखा। 
क्योंकि कुछ दिया जा ही नहीं सकता 
जब तक कि लिया न जाए। 
लेने वालों ने तुम्हारी दी हुई चीज नहीं ली 
बल्कि वह लिया जिससे तुम दूर भागे।
दूर भागना
सत्य-शान्ति-स्नेह की तलाश में
कभी आवश्यक नहीं रहा।
फिर भी भागे और बुद्ध बने।
जब बुद्ध बन गए तब इति हो गयी,
इस बन गए ने तुम्हारे भागने के पीछे के उद्देश्य को ग्रस लिया
और भगवान बना दिए गए तुम।
तुम्हे कुछ मिला हो या न मिला हो
किन्तु तुमसे आज सबको मिल गया है
यह मिल जाना ही तुम्हारी सफलता मानूं
गले इसलिए नहीं उतरता क्योंकि
जो दिख रहा है
उसी को छोड़ तुम दूर गए थे।
तुम अकेले सिद्ध हो गए शायद।
और खुद को पुजवाने छोड़ गए
अपने धर्म-कर्म।
सच कहना - क्या तुम्हारे उद्देश्य में यही सब था ?

1 टिप्पणी:

रचना दीक्षित ने कहा…

तुम से आज सबको मिल गया है
बेहतरीन
पर जो ग्रहण करना चाहे उसके लिए तो सब कुछ है पर जब जान बुझ कर अनजान बने उनका क्या आज वही युग है