प्रेम है क्या?
नदी प्रेम करती है।
यहाँ वहां पर्वतों, चट्टानों से टकराती है
घिसती है, गिरती है
रगड़ खाती है।
छिलता है बदन
मीलों का सफर तै करती है
बिना थके, उफ्फ!
ढेर सारे जख्म के बाद भी
उस सागर में घुलती है
जो नमक लगाता है।
यहाँ वहां पर्वतों, चट्टानों से टकराती है
घिसती है, गिरती है
रगड़ खाती है।
छिलता है बदन
मीलों का सफर तै करती है
बिना थके, उफ्फ!
ढेर सारे जख्म के बाद भी
उस सागर में घुलती है
जो नमक लगाता है।
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