शनिवार, 16 मई 2020

हाशिए

दरअसल वो सुधरना और समझना चाहते थे
मगर उनके नाज़िमों ने उन्हें बहका दिया।
दरअसल वो सुधरना और समझना चाह रहे हैं
उनके नाजिम उन्हें बहका रहे हैं।
दरअसल वे न सुधर सकते हैं ,न समझ सकते हैं
उनके नाजिम उन्हें बहका चुके हैं।
दरअसल वो सब गुलाम और पत्थर हो चुके
उनके नाज़िम अब उनसे अपना काम ले रहे हैं।
सड़क पर बिखरे पड़े हैं पत्थरों के टुकड़े...
न वो पहाड़ बन सकते
न कोई शिल्प..!
सुबह कोई आएगा और झाड़ू से हाशिए पर पटक जाएगा।
【टुकड़ा टुकड़ा डायरी/17 दिसम्बर19】

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