शनिवार, 16 मई 2020

जो 'है'

जो 'है'
वो अभिशप्त है
जो 'हो चुका' और 'नहीं हुआ' 'होगा' 'हो जाएगा' या 'हो सकता है' के
आरोप-प्रत्यारोप की फिजूल, बेवजह की वकीली चीखों के मध्य
कटघरे में खड़ा सुनता रहता है सुनवाई
चुपचाप, मौन, मूक दृष्टा की तरह।
जबकि यही 'है' सत्य है।

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