पिता की कराहती आवाज़
हवा संग, ऊंचे पर्वतो
उबड़- खाबड़ रास्तो
खेत-खलिहानों, नदी -तालो
वृक्षों, उनके झुरमुटों के
बीच से होकर
इस महानगर की
भागती- दौड़ती
जिंदगी को चीरती
समय की
आपाधापी को फाडती
थकी -हारी
सीधे मेरे हृदय में
जा धंसती है औऱ
मैं लगभग बेसुध सा
तत्क्षण उनके पास
पहुंचने के लिए
अधीर हो उठता हूं
कि तभी
महानगरीय मकडी
अपने पूरे तामझाम के साथ
दायित्वों, कर्मो,
नौकरी - चाकरी
का तामसी, स्वार्थी
राक्षसी जाल बुनने
लगती है,
जिसमे फंस कर में
छुट्टिया लेने
छुट्टिया मिल जाने की
याचनामयी सोच
के संग तडपने लगता हूँ।
जाल और सोच के
इस युद्ध के मध्य
मस्तिष्क सुन्न हो जाता है।
गीता का सार
कुरान की आयते
या बाइबिल, गुरुवाणी की शिक्षाये
सब निष्फल हो कर
मेरी इस जंग में
हाथ मलते दिखती है।
समय जाता रहता है,
मेरी जरूरत,
मेरे होने का भाव
सब कुछ शून्य में कहीं
खो जाता है।
राक्षसी मकड जाल
कस जाता है,
महानगरी मकडी
मुझे लानत भेजती है
और अपने पुत्र होने पर
मुझे कोफ्त होती है।
ह्रदय में धंसी वो
आवाज़ भी कही
विलीन हो जाती है,
कि फोन आता है,
मैं ठीक हूँ
तुम परेशान मत होना
मेरे बेटे।
............................
काश
हर पिता के
साथ उसका बेटा
आजीवन रह सके,
ऐसा कोई
ईश्वरीय वरदान
प्राप्त हो सकता है क्या?
ख़ास दिन …
4 दिन पहले
15 टिप्पणियां:
hey bhugawaan! amitabh ji aapne to mun ko kured kar rakh diya.. mahanagari majboori ko kitne sundar dhung se bayaan kar diya hai aapne..
agur ye kavita sacchayi par aadharit thi to ishwaar aapke pitaji ko lambi aur khushhaal zindagi pradaan kare...
aap door hai par aapka mun sada unke saath hain, aur ye baat wo bhi jaante hain ki aapko unki chinta satati rehti hai, varna wo "main theek hoon beta" kehta hua phone kabhi naa aata...
बहूत भावुक रचना है अमिताभ जी..............
आज की आपाधापी में, भागदौड़ की जिंदगी में काश ऐसा हो सके.
आपने अपने जज्बातों को प्रभाव पूर्ण तरीके से रखा है
बेहद भावपूर्ण और एक उत्कृष्ट रचना के लिए साधुवाद.
अमिताभ जी मैं भी कई दिन से अपने पिता पर लिखने की सोच रहा हूँ पर अबतक नही लिख पाया पर आपकी लिखी रचना पढकर मै भावुक हो गया।
मैं ठीक हूँ
तुम परेशान मत होना
मेरे बेटे
हर पिता यही कहते है। और इस मामले में तो हम किस्मत वाले है कि हमारे पिता हमारे साथ ही रहते है। बहुत बेहतरीन लिखा है आपने।
एक सिक्के के दो पहलू-
ऐसे माता-पिता बड़े ही भाग्यवान होते हैं।
पुत्र सदा जिनके , आज्ञा के गुलाम होते है।
न वो प्यार चाहता है, न दुलार माँगता है।
जीवित पिता से पुत्र अब, अधिकार माँगता है।
सम्बन्ध आज सारे व्यापार हो गये है।
सचमुच बहुत अच्छी रचना है!
उस पिता को मेरा प्रणाम,
जिसके बेटे के विचार
इतने प्रभावशाली हैं!
काश
हर पिता के
साथ उसका बेटा
आजीवन रह सके,
ऐसा कोई
ईश्वरीय वरदान
प्राप्त हो सकता है क्या?
.........काश मिल जाए ऐसा वरदान
की बच्चे माता पिता के साथ आजीवन रह सके
बचपन में जिस पिता के आने से सहम जाते थे ...गणित के सवाल गलत करने पे डांट खाते थे बढे होने पर वही पिता अचानक अख़बार पढ़ते आँगन में कितने मासूम लगते है ...खामोश से ..
बेहद भावपूर्ण.......
आपकी कविताओ में वाकई कुछ खास होता है...
राक्षसी मकड जाल
कस जाता है,
महानगरी मकडी
मुझे लानत भेजती है
और अपने पुत्र होने पर
मुझे कोफ्त होती है।
bahut hi bhawuk karne wali rachna...
काश
हर पिता के
साथ उसका बेटा
आजीवन रह सके,
ऐसा कोई
ईश्वरीय वरदान
प्राप्त हो सकता है क्या?
कहना आपका सही है । हर पिता की यह ख्वाहिश होती है कि उसका बेटा जवान होकर आगे की जिम्मेवारी संभाले और अपने मां-बाप को भी वो प्यार दे जिसके वो हकदार है । बहुत बढ़िया लिखा है आपने आभार
महानगरी मकडी
मुझे लानत भेजती है
और अपने पुत्र होने पर
मुझे कोफ्त होती है।
ह्रदय में धंसी वो
आवाज़ भी कही
विलीन हो जाती है,
कि फोन आता है,
मैं ठीक हूँ
एक बहुत ही संवेदन शील रचना। दिल को छू गई। बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।
isi vardaan ki aas me hum bhi hain, kaash ki makdi ka jala kuch samay ke liye kanor pad jaaye kare .jis se ki hum apno ko kuch sukh de paayein , itane imandaar hain ki fir aa jayenge khud b jhud jaal me fasne ke liye ....
महानगरीय मकडी
अपने पूरे तामझाम के साथ
दायित्वों, कर्मो,
नौकरी - चाकरी
का तामसी, स्वार्थी
राक्षसी जाल बुनने
लगती है,
मेरी जरूरत,
मेरे होने का भाव
सब कुछ शून्य में कहीं
खो जाता है।
wah amitaabh ji....
ye to lagta hai mere dil ki baaat ko sundar lafz de diye aapne...
...apno se door reh ke meri bhi yahi haalat hai...
मैं ठीक हूँ
तुम परेशान मत होना
मेरे बेटे।
yahi to kehte hai mere pitaji bhi....
but roya nahi mai ise padhkar yahi shukr hai...
--------utkrisht lekhan ke liye badhieee----------
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