१,
जो दर्द सहे है
जिन दर्दो को सहना है
हिसाब नहीं होता आदमी के पास।
सिवाय इसके की
ब्याज चड़ता जाता है
ओर आदमी समझ नहीं पाता
की
वो दर्दो का बंधुआ
कैसे बन गया?
२,
आदमी अधुरा है।
जन्म से लेकर मृत्यु तक,
कितनी बार जिया ओर कितनी बार मरा?
इसका कोई गणित नहीं।
हां गणित होता है,
धन का, समाज का, लोक का,
लाज का, कर्तव्यो का,
उसका- मेरा ....
मगर जीवन का नहीं,
यानी
टोटल में शून्य है।
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
4 दिन पहले
10 टिप्पणियां:
aapki kavita aaki buddhimata ki parichayak hai...
meri hindi kavitao ki chhoti si koshish yaha se shuru hoti hai,
kripya aakar mera hausla barhayie
http://merastitva.blogspot.com
amitabh ji ho sapke to aap mere ye blog follow kareing taaki aapki vishesh tippniya mujhe milti rahein...main sikhna chahti hu likhne ke sath sath...
सच मुच कितना सुंदर लगता है जब कोई हिन्दी मैं लिखता है ,यूँ ही लिखते रहिए, स्वागतम एक बार और . rangehayat.blogspot.com आपको समझने मैं मज़ा आ रहा है
आप की कविता ने बहूत अलग अंदाज में जिंदगी की सचाई को परोसा है
बहूत खूब लगा लेखन
अमिताभ भाई आपको हमारी शुभकामनाएं
दोनो ही रचनाए बहुत बढिया हैं।इसी तरह लिखते रहें। शुभकामनाएं।
Rachna mein bhi spashtata haiaapki. Swagat.
कविताएं अच्छी हैं। एक दिन आएगा जब लोग आपको जरूर समझेंगे। निराश होने की जरूरत नही है। यह टिप्पणी मैं आपका प्रोफाइल पढ़ने के पश्चात कर रहा हूं।
मेरी शुभकामनाएं।
श्याम बाबू शर्मा
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E mail- shyam_gkp@rediffmail.com
बहुत सुंदर चिट्ठा। ...और सुंदर लेखन। चिट्ठों के इस सागर में गोते लगाने के लिए आपका स्वागत है। आप अच्छा लिखें और आपके शब्द ऐसे ही हमारे दिल को छूते रहें। हमारी शुभकामनाएं हमेशा आपके साथ हैं।
jo mata-pita ko sath rakhta hai uska koi javab ho hee nahi sakta. narayan narayan
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