1,
हां मैं हारा हुआ हूं
अब बताओ कैसे जीतोगे मुझसे?
मगर सावधान रहना तुम
जीत स्थाई नहीं होती।
और न हार....।
2,
गुरुर के लायक हो
सबकुछ तो है तुम्हारे पास,
इसलिये आंखे भी बन्द है,
और मैं गुरबत में
तुम्हे खुली आंखों से देख रहा हूं।
3,
सुना है
पुण्य भी कटते हैं
चलो आज मैं
अपने पाप काटता हूं
तुम पुण्य काटो।
4,
तुम्हारा नाम
अखबारों में है
बडे आदमी बन गये हो तुम,
मैं छोटा हूं,
एक रद्दी की दुकान है बस।
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
4 दिन पहले
28 टिप्पणियां:
गुरुर के लायक हो
सबकुछ तो है तुम्हारे पास,
इसलिये आंखे भी बन्द है,
और मैं गुरबत में
तुम्हे खुली आंखों से देख रहा हूं।
Yah sab se achhee lagee..lekin baqee teenon bhi behad sundar hain!
yaho to hai asli insan ki phchan
bahut achhi hai charoktiya .bhalehi kafi dino bad pdhne ko mili .
khte hai dhiraj ka fl meetha hota hai
aie mere bachpan ke dost . khub mile hm aaj. charokti achchhi lagi.
aapka
sanju parashar
bahut badhiya sir chaaron ki kaatil hain...
व्यवस्था/परिस्थितियां/किस्मत/या फिर समय? ..किसे दोष दें?जो हो गया वो गया..
बस आगे राह में दिख रहे दूर ..उजाले की ओर बढ़ते जाना होगा.
सभी क्षणिकाओं में तेवर कटु हैं..कटाक्ष है ...आक्रोश है ...तो खुद के प्रति कहीं विश्वास भी है.
'जीत स्थाई नहीं होती।
और न हार....।'
यह बात तो हर किसी को ज़हन में रखना चाहिये.
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अहंकार दिमाग पर परदे डाल देता है सोच को अँधा बना देता है.
ऐसे व्यक्ति खुद को ही नुक्सान पहुंचाते हैं इसलिए बिना ऐसे लोगों की परवाह किये चलते रहना चाहिये.
सभी क्षणिकाएं भावाभिव्यक्ति में पूर्ण सक्षम हैं.
आप स्वयं को अभिव्यक्त करने में सफल रहे..
बहुत सुंदर ...
iisanuii.blogspot.com
1. विचार के बारे में
क्या है राय ?
4. वाह क्या बात है
छपे नाम वाले सभी अखबार
मिलते हैं यहां पर ही.
जीत स्थाई नहीं होती।
और न हार....।
सच है और इस सच को स्वीकार करना चाहिये
सभी एक से बढ़कर एक...
जीत स्थाई नहीं होती।
और न हार....।
बहुत उम्दा!
"मगर सावधान रहना तुम
जीत स्थाई नहीं होती।
और न हार....।"
Really good one...
चारों की चारों बहुत अच्छी लगीं
मगर सावधान रहना तुम
जीत स्थाई नहीं होती।
और न हार....।
सारी क्षणिकाएं बहुत ही गहरा भाव लिए हुए हैं..
इसे कहते हैं सोच की धार ।... अपनी केवल धार ।
बहुत बढ़िया है भाई !!
जीत स्थाई नहीं होती।
और न हार....।
बहुत ही खूबसूरती से बयान कर दी ये दास्ताँ
सभी एक से बढ़कर एक
सब की सब क्षणिकाएँ एक से बाद कर एक ... अलग अलग कहानी कहती हैं ... जेट और हार स्थाई नही है ... फिर भी इंसान भाग रहा है जीत के पीछे .... गुरूर और ग़ुरबत ... एक में आँखे अपने आप ही बण्ड हो जाती हैं .. दूसरे में मजबूरी बंद नही होने देती ..... और फिर अंतिम वाली तो कमाल की है ... कोई कितना भी सुर्ख़ियों में रहे ... अंत तो सबका एक ही है ...
अमिताभ जी ... बहुत दिनो आप ब्लॉग पर आए हैं .. अब नियमित हो जाएँ .... मिस कर रहे हैं आपको बहुत ....
चारोक्ति नही यह गागर-मे-सागरोक्ति जैसी हैं..और सबसे ज्यादा तो अंतिम वाली...सही है..सारे बड़े नामों वाले अखबार अपनी दिन भर की उम्र पूरी कर लेने के बाद रद्दी वाले के पास ही पहुँचते हैं..इस तरह देखें तो सबसे बड़ा कबाड़ी ऊपर वाला है..गुरबत मे इसी लिये आँखें खुली रहती हैं..
"Charoktiya"
100 % shudhata ke saath char kadwe satya.Wah...
ese hi prastut karte rahe..!
Dekhan me chotan lage
Ghav kare gambhir.
sadhuvaad.
तय नहीं कर पा रही हूँ कौन सी क्षणिका कौन सी से बेहतर है.सभी की सभी समाज पर चोट करती है.आईना दिखाती हुई खूबसूरत क्षणिकाएं पिरोई हुई है चारोक्ति में.
sabhi bahut acche hai
sabhi bahut acche hai
ग़ज़ब कर डाला अमित भाई...
...
.........
मैं छोटा हूँ,
इक रद्दी की दूकान है बस...!!
क्या धर के दिया है आपने...!
झापड़ हो तो ऐसा हो...
sir..kamaal hai..kamaal hai..har pankti bemisaal hai :)
जीत स्थाई नहीं होती।
और न हार....।
तुम्हारा नाम
अखबारों में है
बडे आदमी बन गये हो तुम,
मैं छोटा हूं,
एक रद्दी की दुकान है बस
in panktiyon ko jab pada to saadhaaran lagi , phir socha 3 ati sundar muktako ke baad iska kya atrh hai. par shaandaar ati ati sundar.
ab jab sochtaa hoon ke saadagi kya hai to ye sochnaa hi sabse bada dikhawa hai.......
gazab likha hai bhai sahab
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