जनसत्ता के 5 फरवरी के अंक में मेरी पोस्ट 'मुश्फिक़ की फिक़्र" प्रकाशित की गई। इसे जनसत्ता ने ब्लोग से ही उठाया। यह खुशी की बात है कि पत्रकारों मे अभी भी कुछ ऐसे लोग बचे हैं जो अच्छा लिखने का, लिखते रहने का हौसला देते हैं और रचनाओं की कद्र करते हैं। उन्हें धन्यवाद। शुक्रिया जनसत्ता।
13 टिप्पणियां:
sabhee aabhaaree hain jansattaa ke
बधाई.
.... बहुत बहुत बधाई!!!!
पहले शुक्रिया लेखक का
उसके बाद छापने वाले का
और पढ़ने वालों के शुक्रगुजार
तो सदा से हैं हम सब।
इतनी अच्छी पोस्ट सबके सामने आनी ही चाहिए ...... बहुत बहुत बधाई अमिताभ जी ...........
आपको हार्दिक बधाइयाँ ! इतना बढ़िया पोस्ट तो ज़रूर आना चाहिए! बहुत अच्छा लगा! लिखते रहिये इसी तरह और हम सब पढ़ते रहेंगे!
bhaut bhut badhai .
shubhkamnaye aap aise hi lihte rahe aise hi ham bhi pdhte rhe .
Badhai Amitabh jee,
aur sukriya jansatta ka jisane is rachna ko jagah di..aur ho bhi kyon na akhir achchhi lekhni ko jagah milni hi chahoye.
अमिताभ जी
बहुत बहुत बधाई
सही कहा आपने , अच्छा लिखने को प्रोत्साहन मिलना ही चाहिए।
बधाई।
जनसत्ता को हमारी ओर से भी आभार कहिएगा साहिब...
बधाई हो अमिताभ अच्छा लगा यह देखकर
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