"दुःख को छिटक मै आया
तुमसे मिलने ओ एकांत,
बता कहां है मागॅ जहां से
मिलता माँ का वो प्रांत।
याद मुझे है सबकुछ किंतु
राह विस्मृत सी हो चुकी
विदा हो रहा था जब मै
थी अश्रुरत पलके झुकी।
ये समय का फेर था कैसा
कालचक्र से छला गया,
अपने हृदय धर तुमको
दूर कैसे मै चला गया।
संग दल-बल, बना महल
किंतु न कभी चैन मिला,
भीड़ में भी रहा अकेला
एक अदद न मीत मिला।
कहा तुम्हे था कि रोना मत
यदि ध्यान कभी मेरा आए,
पर मै यहाँ बिन तुम्हारे
रहा नित दृग नीर बहाए।
अपने हृदय पर रख पत्थर
था केसे तूने विदा किया,
मेरा मन धरने को तूने
विष बिछोह का पी लिया।
वर्षो संघर्ष में लिप्त रहा
पर नही मिला ठोर ठिकाना,
मिले जो जग के वैभव सारे,
झूठे है सब मेने जाना।
मेरा सुख साम्राज्य तुम्ही
मेरा राज वैभव तुम्ही हो,
गोद तुम्हारी, प्यार तुम्हारा,
मेरा जीवन सार तुम्ही हो। "
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
4 दिन पहले
25 टिप्पणियां:
man ko chho lene wali kavita hai...
Ma ke liye hi ye shabd ho sakate hai...
पर मै यहाँ बिन तुम्हारे
रहा नित दृग नीर बहाए।
अपने हृदय पर रख पत्थर
था केसे तूने विदा किया,
मेरा मन धरने को तूने
विष बिछोह का पी लिया।
-बहुत खूब अभिव्यक्त किया है अपने मनोभावों को आपने इस कविता में अमिताभ जी.
dil ko chhoo lene wali kavita... Ma ek aisi dua hai humaari, ki unke baare mein jitna likha jaye kam hai.. ma ki bhaavnao ko aap samajhte hain, ye jaan ke bahut harsh hua.
Ishwar aapki mata ji ko lambi umar or swasth jeevan pradaan kare.
कहा तुम्हे था कि रोना मत
यदि ध्यान कभी मेरा आए,
पर मै यहाँ बिन तुम्हारे
रहा नित दृग नीर बहाए।
अमिताभ जी
इतनी आत्मीय रचना...........कोमल शब्दों लिखी..............माँ की मोहक छवि, उसके स्पर्श का अनुभव उसके विछोह का एहसास..........सब कुछ तो लिख दिया है आपने ............... शब्द जैसे दिल को खोल कर रख दिए हैं.............जज्बातों का उमाड़ रोके नहीं रुक रहा हो जैसे. ममता, माँ और माँ जैसे एहसास को कोई दिल से छु केर ही लिख सकता है......महसूस कर ही बता सकता है मी क्या होती है.
लाजवाब रचना है .........दिल को छूते हुवे
अमिताभ जी ये मन के भाव भी एक सच्चाई है। इन भावों में मैं डूबता गया।
संग दल-बल, बना महल
किंतु न कभी चैन मिला,
भीड़ में भी रहा अकेला
एक अदद न मीत मिला।
पता नही ये जिदंग़ियाँ ऐसी क्यों होती है कि हमें दोनों हाथों में लडडू नही मिलता है। मैं इन सवालों में अक्सर उलझता रहता हूँ। खैर आपकी लेखनी का जवाब नही।
अपने हृदय पर रख पत्थर
था केसे तूने विदा किया,
मेरा मन धरने को तूने
विष बिछोह का पी लिया।
यहाँ तो नि:शब्द हूँ।
वर्षो संघर्ष में लिप्त रहा
पर नही मिला ठोर ठिकाना,
मिले जो जग के वैभव सारे,
झूठे है सब मेने जाना।
सच्ची बात।
मेरा सुख साम्राज्य तुम्ही
मेरा राज वैभव तुम्ही हो,
गोद तुम्हारी, प्यार तुम्हारा,
मेरा जीवन सार तुम्ही हो। "
सच माँ का प्यार होता ही ऐसा है। कि उसके आगे सब कुछ झूठ लगता है। बहुत ही उम्दा रचना है। दिल में उतर गई। और हाँ अमिताभ जी एक इत्तेफाक देखिए मैं आते ही आपकी रचना पढ रहा था और उधर से आपका कमेट आ गया।
मन की कई परतें भीग गयीं..."माँ" ये शब्द खुद ही इतना सुंदर है तिस पे इतनी सुंदर कविता लिखी है आपने अमिताभ जी कि क्या कहूँ ....
"ये समय का फेर था कैसा/कालचक्र से छला गया
अपने हृदय धर तुमको /दूर कैसे मै चला गया"
हम सब बेटों का क्रूर सच
पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ कि आपको मेरी शायरी पसंद आई!
मुझे आपका ब्लॉग बहुत ही अच्छा लगा!बहुत सुंदर लिखा है आपने !
मेरे इन ब्लोगों पर आपका स्वागत है-
http://khanamasala.blogspot.com
http://urmi-z-unique.blogspot.com
गोद तुम्हारी, प्यार तुम्हारा,
मेरा जीवन सार तुम्ही हो......
बहुत सुंदर लिखा है आपने......
aapne mera blog dekha aur saraaha bhi ....romanchit hoon ..aage kya likhu...achchha lag raha hai ...
... प्रसंशनीय व प्रभावशाली रचना।
bahut khoob likha hai apane
maine apaki kai rachanye padhi apake blog par kafi accha lagi saari
me chahta hu ke aap mere blog par mere dwara likhi gayi rachnao ko bhi dekhe aur us par apane vichar prakat kare
dhanaywad
mere blog ka address hain:-
http://seemywords-chirag.blogspot.com/
प्रिय अमित पहले तो मैं यह चाहता हूँ (वैसे मेरे चाहने न चाहने से क्या होता है ) कि आपके यह रचना १० मई को किसी समाचार पत्र, पत्रिका में प्रकाशित होना चाहिए -हो सकता है आपने यह रचना १० मई के हिसाब से ही लिखी हो /अभी मैं ज्ञानी जैलसिंह जी द्वारा माँ के वाबत कही बात ही पढ़ रहा थाअश्रुपूरित आँखों से बिदा वाली बात आपकी रचना में देख कर मुझे राम का बन गवन याद आगयावो गाना भी याद आया -वो होते हैं किस्मत वाले ,जिनके माँ होती है /अभी मैं कोटा (राजस्थान )से प्रकाशित होने वाला 'दैनिक भास्कर 'पढ़ रहा था उसमे लिखा था"""ईश्वर हर जगह नहीं पहुंचा इसलिए उसने माँ बनाई,जन्मदात्री भी पालनहार भी ""कभी ध्यान आये मेरा रोना मत से वो गाना याद आया "हम छोड़ चले हैं महफिल को याद आये कभी तो मत रोना ""साम्राज्य बैभव सब तुम्हारी गोद में है यह आपके वाक्य संसार के सर्वश्रेष्ठ शब्द हैं
"दुःख को छिटक मै आया
तुमसे मिलने ओ एकांत,
बता कहां है मागॅ जहां से
मिलता माँ का वो प्रांत
aaj sara jha apni preysi ko dhudhne me sare jatan kar rha hai. tab ma ko samrpit ye kvita, jeaise tpti grmi ke bad vresha ki phli fuhar jo sukun deti hai vhi sukun apki is kvita ne diya hai .
ma ke liye bhut sundar bhavnaye .
shubhakamnaye.
ऐसी बातें ब्लॉग पर नहीं लिखी जातीं मगर लिख रहा हूँ ,क्योंकि मैं एक बाप भी हूँ और बेटा भी / मेरे दादाजी कहा करते थे कि किसी का बाप मर जाये तो वह दस पन्द्रह दिन रोकर अपने काम में लग जाता है मगर आदमी का रोजगार छिन जाये तो वह जिंदगी भर रोता रहता है /कुछ बच्चे बचपना करते हैं माँ बाप की याद आई नहीं कि नौकरी छोड़ कर उनके पास भाग लेते हैं खुद भी बाद में परेशान रहते है और माँ बाप की भी आर्थिक मदद नहीं कर पाते ,माँ बाप का अपनी जगह कितना महत्वपूर्ण स्थान है सब जानते है लेकिन नदी पार करने वाले जानते हैं कि जब तक अगला पैर अच्छी तरह पत्थर या ठोस जगह पर नहीं जम जाता तब तक दूसरा पैर नहीं उठाते ,यही बात रुजगार के सम्बन्ध में भी लागू होती है
"कहा तुम्हे था कि रोना मत
यदि ध्यान कभी मेरा आए,
पर मै यहाँ बिन तुम्हारे
रहा नित दृग नीर बहाए।"
अल्पना जी और सुशील जी ने बहुत कुछ लिख ही दिया है...
मेरे लिया कुछ बचा ही नहीं है...
किन्तु, इतना अवश्य कहूंगा.... ये सर्वोत्तम रचनाओं में से एक है.
विशेषकर यह पक्तियां तो मन को छू गयी हैं.
ऐसा चित्र तो आप ही खींच सकते हैं.
प्रणाम है आपको..
~जयंत
(विलब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ... आपका ब्लॉग लिंक सही स्थान पर नहीं था.
अतैव, मैंने आपके नए पोस्ट के बारे में जाना ही नहीं...
अब उचित स्थान पर है..)
More I read this one..
More I bow to you...
and to Mother.
and Motherhood...
Maa.
She is simply the closest to GOD!
You have really brought tears to my eyes..........................
~Jayant
मेरी जिंदगी की सबसे खूबसूरत कविता पढें और अपनी माँ के प्यार,अहसास और त्याग को जिंदा रखें
कविता पढने नीचे क्लीक करें
सताता है,रुलाता है,हाँथ उठाता है पर वो मुझे माँ कहता है
मेरा सुख साम्राज्य तुम्ही
मेरा राज वैभव तुम्ही हो,
गोद तुम्हारी, प्यार तुम्हारा,
मेरा जीवन सार तुम्ही हो। "
माँ के प्रति आपकी ये आदर भावना सदा यूँ ही बनी रहे ...!!
गोद तुम्हारी, प्यार तुम्हारा,
मेरा जीवन सार तुम्ही हो......
माँ को ऐसा ही प्यार देने वाला बेटा मिल जाये तो फिर उसे और कुछ चाहिए ही नहीं.
सुन्दर भाव व्यक्ति
आभार
चन्द्र मोहन गुप्त
माँ पर लिखी ये खूबसूरत रचना ज़रा देर से पढ़ पाया अमिताभ जी,,
पर क्या फर्क पड़ता है,,,,,
माँ भी वही और ममता भी वही,,,,
भले ही मदर्स डे हो न हो,,,,
बहुत सुंदर,,,,
वाहवा.. बेहतरीन भावाभिव्यक्ति के लिये साधुवाद..
amitabh ji
itni sundar kavita aur kitne acche shabdo ka prayog kiya hai.. bhai man prasaan ho gaya ... main teen baar padh chuka hoon , itna ras hai ki bus poochiye mat .. badhai sweekar karen ..
बहुत खूब लिखा है आपने अमिताभ जी । इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई । मन को मोह लेने वाली रचना आपने पेश की है
आपके ब्लाग पर काफ़ी देर के बाद आया हूं किंतु वही सुंदर शब्दों को तराश कर उन्हें मूर्तरूप देना, उनकी जड़ता में अर्थपूर्ण प्राणों का संचार करके पंक्तियों में अपने भावों, उद्गारों और अनुभूतियों की सुंदर अभिव्यक्ति की कला आपकी इस रचना में भी स्पष्ट लक्षित है। बधाई।
महावीर शर्मा
पर मै यहाँ बिन तुम्हारे
रहा नित दृग नीर बहाए।
अपने हृदय पर रख पत्थर
था केसे तूने विदा किया,
मेरा मन धरने को तूने
विष बिछोह का पी लिया।
बहुत ही बेहतरीन लिखा है।
एक टिप्पणी भेजें