फिजूल में
जुटे होते है हम
बैल की तरह ।
पूरी जिंदगी
इसका- उसका
तेरा- मेरा
करते रहते है ।
मन का हुआ
तो खुशी
न हुआ तो गम ...
ओर सबकुछ
टिका होता है
दूसरो के व्यवहारों से ॥
पाने- खोने की
लालसा में ।
बस...
फिजूल में ही.....
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
4 दिन पहले
4 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया...
ताज़गी है आपकी कहन में। बहुत दिनों बाद यूं शब्दों को कविता की शक्ल में देखा। अतुकांत कविता हो तो ऐसी हो।
बधाई।
अच्छा लगा यहां आकर।
wah janab wah..
bahut khoob likhte he aap..
esi kavitaye likhna bhi pratibhavaan hone ka sanket he..
fijul me hi kyu apni ray du...magar nahi ye fijul nahi hoga kyuki aapki kavitao me jivan ka sach chhupa hota he
अच्छा है..बधाई।
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