बारिश से मचा कीचड़ मखमली था उन दिनों..
उन दिनों फ़िक्र नहीं थी कि
कीचड से सने कपडे धुलते कैसे हैं या
मां नहलाती कैसे हैं ?
कीचड से सने कपडे धुलते कैसे हैं या
मां नहलाती कैसे हैं ?
फ़िक्र नहीं थी कि आसमान भले बरसता हो
किन्तु नगर पालिका का नल नहीं बहता है ।
किन्तु नगर पालिका का नल नहीं बहता है ।
उन दिनों पूरा मोहल्ला भीगता था ..
लोहे की पतली छड़ जमीन में धंसती थी
और हमारी किलकारियोँ के बीच एक खेल संपन्न होता था।
और हमारी किलकारियोँ के बीच एक खेल संपन्न होता था।
उन दिनों स्कूल की नोट बुक के पन्ने
नावों की शक्ल में कैसे आते थे
और मास्टरजी की डपट से लेकर
शिकायत घर तक कैसे पहुँचती थी
ज्ञात नहीं था।
नावों की शक्ल में कैसे आते थे
और मास्टरजी की डपट से लेकर
शिकायत घर तक कैसे पहुँचती थी
ज्ञात नहीं था।
उन दिनों बारिश भी होती थी
नदी नाले पुर होते थे।
नदी नाले पुर होते थे।
शहर के बाहर बने पुल के ऊपर से बहता पानी देखने भागना
और घर में माँ की चिंता पर सवार
बारिश में पसीना बहाते पिता के ढूंढने निकलने की फ़िक्र किसे थी ?
और घर में माँ की चिंता पर सवार
बारिश में पसीना बहाते पिता के ढूंढने निकलने की फ़िक्र किसे थी ?
उन दिनों टपकती छत किसी फव्वारे से कम नहीं लगती थी
घर में घुसा पानी परेशानी का सबब भी होता था। कौन जानें।
घर में घुसा पानी परेशानी का सबब भी होता था। कौन जानें।
'उन दिनों' वाले वो दिन अब नहीं हैं ...
अब बारिश और देह के बीच
रेन कोट या छाते जैसी दीवार है।
रेन कोट या छाते जैसी दीवार है।
मजबूत छतो पर बरसते पानी का कोई संगीत नहीं है।
पुल तो है , पुल पर से पानी भी बहता है
किन्तु न दौड़ है , न भागना है।
किन्तु न दौड़ है , न भागना है।
दफ्तर में बैठे खबरों का संसार है
खबरों में ही बारिश है।
खबरों में ही बारिश है।
इतना सब व्यस्थित है कि
उन दिनों वाली अव्यवस्था की स्मृतियाँ चुभ चुभ बार बार
अहसास दिलाती है कि
बारिश उन दिनों ही होती थी
इन दिनों तो बस बहती है।
उन दिनों वाली अव्यवस्था की स्मृतियाँ चुभ चुभ बार बार
अहसास दिलाती है कि
बारिश उन दिनों ही होती थी
इन दिनों तो बस बहती है।
स्मृतियाँ जैसे बहकर उन दिनों तक पहुंचती है
झूला झूलती है
और चुपचाप लौट आती है
सूखे सूखे घर में....
झूला झूलती है
और चुपचाप लौट आती है
सूखे सूखे घर में....
कुछ भी तो भीगा नहीं है अब तक
उम्र की इस प्रौढ़ावस्था बारिश में
मन और स्मृतियों के अतिरिक्त।
उम्र की इस प्रौढ़ावस्था बारिश में
मन और स्मृतियों के अतिरिक्त।
4 टिप्पणियां:
Vah ab to bhigne me mobail bhigne ka jyada Dr smaya rahta hai.
महानगरों की रौनकें यहाँ की सुख -सुविधाओं के पीछे भागते जब कदम थकने लगते हैं
तब ही अहसास होता है कितना कुछ पीछे छोड़ आये हैं ,अहसासों की नमी ही स्मृतियों को हरा कर पाती है.
कविता के माध्यम से न जाने कितने दिलों की बात आपने कह डाली है.
अच्छा लगा वर्षों के बाद ब्लॉग जगत की हलचल में उतरना,पुराने ब्लोगिया पन्नो को फिर से खंगालना!
अंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस पर आपका योगदान सराहनीय है. हम आपका अभिनन्दन करते हैं. हिन्दी ब्लॉग जगत आबाद रहे. अनंत शुभकामनायें. नियमित लिखें. साधुवाद.. आज पोस्ट लिख टैग करे ब्लॉग को आबाद करने के लिए
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
वाह
बहुत ख़ूब
बचपन की स्मृतियां ताज़ा हो गईं
आपकी कविता के माध्यम से
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