बहुत दिनों से लिखना नहीं हो पा रहा है। इधर रीवा से श्रद्धेय डॉ.पियुष श्रीवास्तव की एक शोध व बोधपरक पुस्तक "अनंत यात्रा, धर्म का विज्ञान" प्राप्त हुए कई दिन हो गये तथा उसे दो-तीन बार पढ भी लिया, किंतु उस पर कुछ लिखने की इच्छा मेरे कार्यों की व्यस्तताओं के कारणवश अधर में है। अपनी इच्छा को शब्द रूप देकर शीघ्र संपादित करुंगा ही, इसके पहले वर्ष 2001 में एक छोटी सी रचना लिखी थी जो डायरी पलटते हुए दिखी तो सोचा ब्लॉग पर चिटका दूं.., न जाने क्यूं मुझे इसकी पंक्तियां अच्छी लगी. ..हालांकि बहुत ही साधारण है मगर अपनी मुर्गी है सो अच्छी लगनी ही है...खैर
"अकेला नहीं
मगर
भीड में नहीं,
अस्तित्व अपना
अदना ही सही।
कुछ जानें
कुछ न जानें..
अपना यही
लेखा-बही।"
दिल्ली वाला लहजा और उसके वाला ह्यूमर...
1 हफ़्ते पहले
18 टिप्पणियां:
बहुत दिन बाद आपको पढना अच्छा लगा कितने ही व्यस्त हो एक आध ऐसी छोटो ही shi rachna jarur daliye .
yh lekha bahi bhut sntulit hai
छोटी सी कविता मगर भाव गहरे लिए है..सच ही तो है अपना लेखा बही अपना हिसाब किताब खुद को ही मालूम होता है..भीड़ में वैसे भी ये ही बस अपना होता है ..
अमिताभ जी बहुत अच्छी रचना है...मुर्गी आपकी है लेकिन कमाल की है...
नीरज
इतने दिन बाद आपको पढ़ना अच्छा लगा छोटी है तो क्या कारगर बहुत है यहाँ तो हर एक भीड़ में भी अकेला ही है
श्रीमान जी, मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
अभिताभ जी पहली दफा आपके ब्लॉग पर आना हुआ.आपकी कविता और आपका अंदाज दोनों अच्छे लगे.अपना अस्तित्व ही हमें भीड़ से अलग बनाता है.सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आइयेगा,आपका हार्दिक स्वागत है.
gagar mein sagar ....!
कम शब्दों में बहुत खूब कही। ऐसा लगता है जैसे मुझ पर ही कही।
श्रीमान जी, क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी कल ही लगाये है. इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.
कविता छोटी होने के बावजूद कथ्य के हिसाब से सम्पूर्ण है......
यह कविता आपको आछी लगी ठीक है.. मगर हमें बहुत अच्छी लगी
"अकेला नहीं
मगर
भीड में नहीं,
अस्तित्व अपना
वाह वाह .....
अमिताभ जी बहुत खूब .....
अपनी १०, १२ क्षणिकायें तुरंत हमें मेल कर दें अपने संक्षिप्त परिचय और तस्वीर के साथ .....
हमें सरस्वती-सुमन पत्रिका में अतिथि संपादिका होने का गौरव मिला है जो क्षणिका विशेषां होगा ....
harkirathaqeer@gmail.com
अपना अस्तित्व बना रेक ... चाहे अकेले ही रहे ....
अमिताभ जी ... बहुत दिनों के बाद आपको ब्लॉग पे देख कर अछा लगा ... काम में व्यस्त रहें ये तो अच्छी बात है ...
बहुत खूबसूरत लाइने लिख डाली आपने...
अस्तित्व अपना
अदना ही सही।
कुछ जानें
कुछ न जानें..
अपना यही
लेखा-बही।"
सरल सम्प्रेषण है पर भाव बहुत गहरे....
प्रिय दोस्तों! क्षमा करें.कुछ निजी कारणों से आपकी पोस्ट/सारी पोस्टों का पढने का फ़िलहाल समय नहीं हैं,क्योंकि 20 मई से मेरी तपस्या शुरू हो रही है.तब कुछ समय मिला तो आपकी पोस्ट जरुर पढूंगा.फ़िलहाल आपके पास समय हो तो नीचे भेजे लिंकों को पढ़कर मेरी विचारधारा समझने की कोशिश करें.
दोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ.
अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?
आप मेरे ब्लॉग पर आये और सुन्दर सी टिपण्णी देकर आपने मुझे कृतार्थ किया,इसके लिए बहुत बहुत आभार.
एक बार फिर से आईये मेरे ब्लोग पर. मेरी ५ मई को जारी की गई पोस्ट आपका बेसब्री से इंतजार कर रही है.
अमित जी आपने तो व्यस्तता बतलादी मगर मै तो बिजी विदाउट वर्क हो रहा हू।पुरानी पोस्ट देखी तब आपका नाम तलाश पाया । लंेखा बही अच्छा लगा । अकेले भी नहीं भीड में भी नहीं । भीड मे तो वैसे भी हरेक का अस्तित्व अदना सा हो ही जाता है
http://shayari10000.blogspot.com
एक टिप्पणी भेजें