बचपन से ही सृष्टि के सन्दर्भ में जानने-समझने की जिज्ञासा रही है। यह विषय मेरे लिये हरहमेश रोमांचित कर देने वाला रहा है। बहुत कुछ पढा-लिखा, अध्ययन किया, साथ ही इस सन्दर्भ में पंडित, ज्योतिष, वैज्ञानिक, ज्ञानियों आदि इत्यादि से समय समय पर अपनी जिज्ञासा शांत करने के उपक्रम भी करता रहा हूं, बावजूद सृष्टि मेरे लिये अबूझ ही बनी हुई है। यानी संतुष्ट नहीं हो पाया हूं कि आखिर ऐसा अजूबा जन्मा कैसे? हालांकि अपने-अपने तरीकों से लगभग सारे शास्त्रों, ज्ञानी महापुरुषों ने इसके बारे में बताया है। समझाया है। विज्ञान का भी अपना तर्क है। जितना अधिक मिल सका उतना मैने पढा भी। किंतु इस क्षुधा का क्या जो शांत ही नहीं होती? खैर..। आज इस व्यक्त सृष्टि का पहला ऊषाकाल है। सवंतसर। समग्र जगत का प्रथम सूर्योदय। भारतीय नव वर्ष का प्राम्भिक दिन। आप गर्व कर सकते हैं कि इसका प्रारम्भ किसी ऋषि-मुनि, पंडित, महात्मा आदि की किसी जन्मतिथि आदि से नहीं है बल्कि जिस क्षण सृष्टि शुरू हुई उसी समय संवतसर का प्रारम्भ हो गया। हां इस तिथि मे कई महाज्ञानी जन्में, मृत्यु को धारित हुए। यहां तक कि युधिष्ठिर विक्रमादित्य समेत कइयों ने अपने अपने संवतसर चलाये भी, किंतु इस प्रथम संवतसर की पहली सौर्यकिरण, पहला दिन, तिथि गणना सचमुच बेहद ही दिलचस्प और अनूठी है। गणना के अनुसार सृष्टि की आयु 1 अरब 95 करोड, 58 लाख, 85 हजार एक सौ 12 वर्ष हो चुकी है। वैज्ञानिक अनुमान भी यही है। आज के दिन से ही काल की भी शुरुआत हुई थी। जी हां वही काल जिसे हम समय, टाइम आदि नाम से जानते हैं। भारतीय दर्शन में काल और ब्रह्म पर्याय हैं। लोकजीवन में काल और मृत्यु को पर्याय माना जाता है। सृष्टि सर्जन से पूर्व काल बोध नहीं था। संवतसर भी नहीं। फिर उसके पहले था क्या? मेरी जिज्ञासा का सूत्रपात इसी प्रश्न से हुआ था। ऋगवेद के नासदीय सूक्त (10.129) में बहुत खूबसूरत चित्रण किया गया है कि- तब न सत था, न असत। न भूमि, न आकाश- "नो व्योमा परो यत।" न मृत्यु थी न अमरत्व। न रात, न दिन। वायु भी नहीं थी किंतु वह एक स्वयं अवात अवस्था में अपनी शक्ति से प्राण ले रहा था- "आनीदवातं स्वधया तदेकं।" अब आप देखिये कितना मजेदार है यह, कि 'वह एक- तदेकं' कौन? .., ऋगवेद में है यह, कि वह बिना हवा के सांस ले रहा था। इसी 'वह एक' को विद्वानजन कभी विप्र इन्द्र, मित्र, अग्नि तो कभी वरूण आदि देव नामों से पुकारते हैं। किंतु वह 'एक सद'- एक ही सत्य है- एकसद विप्रा बहुधा वदंति। (ऋ.1.164.46) सृष्टि सर्जन के मंगलाचरण के साथ का आईना ही परिवर्तन की शुरूआत है। प्रारम्भ है। जब परिवर्तन है तो तय है कोई गति अवश्य है। जहां गति है वहीं समय है। और यही समय का दर्पण ही तो संवतसर है।
विज्ञान में देखें। प्रत्येक सर्जन या बदलाव यानी परिवर्तन के पीछे एक ऊर्जा है। शक्ति के केन्द्र लगातार ऊर्जा दे रहे हैं तो क्या एक दिन इस संचित ऊर्जा का भी क्षय होगा? हो सकता है। होगा ही। एंगेल्स की ' डायलेक्टिस आफ नेचर' में लिखा है करोडों वर्ष बीतेंगे, सूर्य की ऊर्जा क्षीण होगी। सूर्य का ताप ध्रूवों के हिम को गला न पायेगा। हिम बढेगा, मानव जाति को जीवन के लिये पर्याप्त ऊष्मा नहीं मिलेगी। वो आगे लिखते हैं कि- धरती चन्द्रमा के समान, निर्जीव हिम पिंड की तरह निर्जीव होते सूर्य के चारों ओर निरंतर घटती हुई कक्षा में चक्कर लगायेगी और अंत में उसी में जा गिरेगी। कुछ ग्रह इसके पहले ही वहां गिर चुके होंगे। वैदिक दर्शन इसे प्रलय कहता है। किंतु प्रलय काल सम्पूर्ण ऊर्जा का नाशक नहीं है यानी उसके बाद भी ऊर्जा शेष रहती है और यही वजह है कि प्रलय के बाद पुनः सृष्टि का जन्म होता है। भारत के सांख्य दर्शन में कपिल ने यही बात बहुत पहले ही कही थी। सृष्टि और प्रलय प्रकृति की इकाई में चलते हैं इसीलिये प्रकृति मे द्वंद्व दिखाई देता है। बडी अजीब है न सृष्टि। और आज उसके काल के प्रवाह में बहते बहते हम यहां तक आ गये। भारतीय कालबोध का क्षण सृष्टि का प्रारम्भ है। फिर इसके बाद युग हैं। महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद यानी ईसा पूर्व 3102 वर्ष से कलियुग चल रहा है। युगाब्ध के अनुसार भारत की 52 वीं सदी है यह। विक्रमसम्वत के अनुसार यह 2067 सम्वत है। यही शक संवत्सर 1932 है। किंतु दुनिया ईसाकाल की दृष्टि से देखती है जिसके अनुसार 21 वीं सदी है। जो भी हो किंतु यह निर्विवाद सत्य है कि आज के दिन से सृष्टि का प्रारम्भ हुआ था जो हमारे लिये नववर्ष का प्रारम्भ है। तो आइये इसे मनायें। हमारे भारतीय संवत्सर का स्वागत करें। खूब नाचे-झूमें-गायें। सभीको मेरी ओर से आत्मीय शुभकामनायें।
ख़ास दिन …
3 दिन पहले
17 टिप्पणियां:
बहुत सरगर्भित जानकारीपूर्ण आलेख.
आपको भी शुभकामनाएँ.
बहुत रोचक ,अच्छा आलेख आपको भी नव संवत्सर की शुभकामनाएं !
बहुत रोचक ग्यानवर्द्धक आलेख है। आपको भी नव संवत्सर की शुभकामनाएं !
काफी जानकारी प्राप्त हुई आपके लेख से
अमिताभ जी बहुत ज्ञानवर्धक पोस्ट लगी. सब कुछ नया लगा. आपकी शोध की मेहनत दिखती है. आभार नव वर्ष की मंगल कामना करती हूँ
चलिये आज तो केवल नववर्ष की शुभकामनाये । मेरा ब्लॉग " ना जादू ना टोना " पढ़ रहे हैं ना ? इसी विषय पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ लिख रहा हूँ ।
http://wwwsharadkokas.blogspot.com
हिन्दू नव वर्ष पर कई पोस्ट पढ़ीं मगर आप की इस पोस्ट में बहुत ही सारगर्भित जानकारी हैं.
सृष्टि की आयु जानकार आश्चर्य हुआ.
नववर्ष की हार्दिक बधाई आप को भी.
बहुत ही सुन्दर ज्ञानपूर्ण जानकारी |नववर्ष कि हार्दिक शुभकामनाये और बधाई |निमाड़ के गणगौर उत्सव कि बहुत बहुत बधाई |आपकी पछली सारी पोस्ट पढना बाकि है |मैंने मेल लिखा है |
वाह ज्ञान भरी बातें। हमने तो कभी ऐसा नही पढा। ये तो आपके लेखन और मेहनत की वजह से हम ये सब पढ पा रहे है। जब आपने सृष्टि की आयु लिखी थी तो अपनी पढाई याद आ गई पता नही किस कक्षा की बात है पर वहाँ एक नम्बर का एक सवाल जरुर आता था कि सृष्टि की आयु क्या है? खैर आपने विज्ञान और वेदों से इतनी जानकारी दी। सच ये पोस्ट बुकमार्क करने लायक है। आप और आपके परिवार को भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत ही बढ़िया और सुन्दर प्रस्तुती! अच्छी, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई आपके पोस्ट क दौरान!
ज्ञानवर्धक जानकारी है. काफ़ी कुछ नया रहा हमारे लिये.
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
सबसे पहले तो आपको बधाई..
आज आपका जो लेख पढ़ा..उसमे एकदम नयी जानकारी मिली..
सबसे ज्यादा ख़ुशी ये हुई..के हमारे पुरखों द्वारा अनुमानित किये गए
स्रष्टि के आरम्भ काल से विज्ञान भी सहमत है...
हालांकि हमने इस बारे में कुछ पढ़ा जाना नहीं है....पर ये हम जाने कैसे जानते हैं कि
''प्रलय काल सम्पूर्ण ऊर्जा का नाशक नहीं है यानी उसके बाद भी ऊर्जा शेष रहती है''
और इसके बाद ये सोच रहे हैं कि...
एंगेल्स की ' डायलेक्टिस आफ नेचर' में लिखा है करोडों वर्ष बीतेंगे, सूर्य की ऊर्जा क्षीण होगी। सूर्य का ताप ध्रूवों के हिम को गला न पायेगा। ..
यहाँ तो आये दिन सूरज जवान होता दिख रहा है.....ताप दिनों-दिन बढ़ रहा है..हिम पिघल रहे हैं.....हो सकता है के और आगे की बातें हों ये...
अभी आज तो इस
नव संवत्सर का जश्न मनाएं..
वाह अमिताभ भाई वाह
सबसे पहले तो बधाई देर से ही सही
और फिर
इस सोचक माला की जानकारी के लिए
स्वीकारें ढेर सारी मंगलकामनाए
अच्छा लगा जानकर आप इतना सब जानते हैं
हम तो इस संबंध में अपने को विद्यार्थी ही स्वीकारते हैं।
बहुत अध्ययन और परिश्रम करके अच्छी जानकारी उपलब्ध कराइ |धन्यबाद |कभी इंतना सोचा ही नहीं |केलेंडर में शक सम्बत ,विक्रम ,ईसवी आदि दिख लिया करते थे ये क्या है और क्यों है जानने की जिज्ञासा भी नहीं हुई | कलयुग के वारे में इंतना ही पता था की यह किसी राजा के मुकुट में बैठ गया था जिससे राजा की बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी और वो सांप वगैरा के किस्से आदि
वाह क्या लेख लिख डाला है गुरू जी..ऋगवेद का अन्गे्ल्स से कनेक्शन..और फिर सांख्य.. अग्निहोत्रीय धूम के साथ उड़ा ले गयी यह पोस्ट आध्यात्मिक अनन्त मे..आनंद के साथ..संयोग है कि इन दिनों के किताब बाँच रहा था ’व्हाट इज टाइम’..और बातें काफ़ी कुछ वैसी ही हैं उसमे भी!!
नवसंवत्सर की आपको हार्दिक बधाई!!!
bahut rochak tathye jaanNe ko mile.bahut gyanvardhak rachna.
badhayi.
बहुत ही सारगर्भीत लेख अमिताभ जी .... अपने पुराने इतिहास को जानना, अपने ग्रंथों से चुने हुवे खजाने को देखना ... किसी स्वप्निल दुनिया या तिलिस्म से कम नही लगता .... अध्बुध लिखा है आपने ...
आपको नव संवत्सर की शुभकामनाएं ...
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