शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

आटा और रोटी

आटा गूंथना
जीवन मथने
जैसा ही तो है|
उसकी लोई बना
बेलन से आकार देना
और गर्म तवे पर
रख सेंकने भर से
रोटी नहीं बनती,
आग पर
तपना भी होता है
और इस तरह
जलना होता है
कि कही
चिटक तक न लगे|
जीवन क्या ऐसा नहीं?

फिर दुःख ...
कहते है
रोटी को
चबा चबा कर खाना
पाचन तंत्र के लिए
ठीक होता है|
न निगलना
न उगलना..
चबा कर
रसमय कर लेना|
जीवन में दुःख भी
एक रोटी ही तो है|

15 टिप्‍पणियां:

शोभना चौरे ने कहा…

जलना होता है
कि कही
चिटक तक न लगे|
जीवन क्या ऐसा नहीं
जीवन कि बहुत खुबसूरत परिभाषा |

दुःख और रोटी के संबंध को क्या कहें ?दुःख को आत्मसात करना ही जीवन है |
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति

महावीर ने कहा…

बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आया हूँ. यह तो मानना पड़ता है कि आप विभिन्न विषयों पर कलम चलाते हो, एक नया अंदाज़ होता है. जीवन और रोटी में कितना साम्य है, पूरी कविता पढ़ने से ही पता लगता है. अंतिम पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं:
न निगलना
न उगलना..
चबा कर
रसमय कर लेना|
जीवन में दुःख भी
एक रोटी ही तो है|
महावीर शर्मा

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत गहरी रचना!!

कविता रावत ने कहा…

जीवन में दुःख भी
एक रोटी ही तो है|
Sahi pribhashit kiya aapne jeewan ko. Sudar abhivakit ke liye badhai

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

dukh ke bina jeene me koee maza nahi rahta.....aatam manthan...jeevan manthan karti huee khoobsurat kavita....

सुशील छौक्कर ने कहा…

सच आप बहुत गहरे उतरकर,प्रतीकों का इस्तेमाल करते हुए गहरी गहरी बातें लिखते है। सच जीवन रोटी के इर्द गिर्द ही तो घूमता है। और आपने कितने सादे और सुन्दर रुप से अपनी बात कही है इस चीज के तो हम कायल है। काश हम भी शब्दों को ऐसे ही गूथ पाते। वैसे देखिए अपनी लिखनी का कमाल।
रख सेंकने भर से
रोटी नहीं बनती,
आग पर
तपना भी होता है

वाह क्या बात है। और हम हमेशा सुख ही माँगते रहते है
रोटी को
चबा चबा कर खाना
पाचन तंत्र के लिए
ठीक होता है|
न निगलना
न उगलना..
चबा कर
रसमय कर लेना|
जीवन में दुःख भी
एक रोटी ही तो है|

अद्भुत....। काश हम इस रहस्य को समझ जाए तो दुख से विचलित ना होंगे। पर.....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जीवन में दुःख भी
एक रोटी ही तो है ...

Sach hai Amitaabh ji ... jaise jeevan bhar roti ki jaroorat rahti hai .... vaise hi dukh bhi jeevan ka saath nahi chodta ... Roz ke jeevan bhi to aata goonthne ki tarah hi hai .... har roz kisi na kisi alag roop mein gunth kar chalta hai ...

Aata, Roti aur loi ke bimb ke chaaron aur rachi behad shashakt rachna hai ...

अपूर्व ने कहा…

क्या बात है..बड़े काम की और गहरी बात कह दी सर जी..आटे मे पानी की मात्रा थोड़ी भी कम ज्यादा होने पर दिक्कत आ जाती है..और एक अच्छा और सार्थक जीवन जीना बस आटा गूथने जैसा ही आर्ट का काम है..और दुःखों को चबाना भी..

"अर्श" ने कहा…

waah kya khubsurat baat ki hai aapne amitaabh ji... jo samyata aapne in dono me (jeevan aur aata)banaya hai wo apne aap me kamaal ki baat ki hai aapne... aapke is nazariye ke liye salaam aapki lekhani ko ... aur jab aadarniya mahavir ji ne khud dil khol ke itani daad di hai to aur kya rah jata hai .... badhaayee huzoor


arsh

गौतम राजऋषि ने कहा…

अमिताभ जी की लेखनी का एक और सशक्त चमत्कार...

अभूतपूर्व बिम्बों का अनूठा संयोजन अमिताभ भाई!

Urmi ने कहा…

जीवन में दुःख भी
एक रोटी ही तो है|
वाह अमिताभ जी वाकई में आपने बिल्कुल सही कहा है ! आखिर यही है जीवन की परिभाषा! बहुत ही गहराई और सुंदर अभिव्यक्ति के साथ आपने उम्दा रचना प्रस्तुत किया है!

BrijmohanShrivastava ने कहा…

।बिल्कुल जीवन ऐसा ही है तपते रहो सिकते रहो मगर चिटक न लगे मुंह से उफ़ न निकले "जिन्दगी से बडी सजा ही नही और क्या जुर्म है पता ही नही ।बहुत प्यारी बात कही है कि दुख मे भी जीवन को रस मय कर लेना ।जीवन जीने का यही एक उत्तम तरीका है

दर्पण साह ने कहा…

theek hai amitabh ji ab se har dukh ka aanad leinge...

paki hui roti ki tarah chaba chaba kar khana hai....

"Rahi manuwa dukh ki chinta kyun satati hai....."

aur gautam sir ne theek wahi baat kahi jo main kehna chahraha tha...
"अभूतपूर्व बिम्बों का अनूठा संयोजन"

waise hain kahan aaj kal?

शरद कोकास ने कहा…

भाई रोटी से इस तरह जीवन का दर्शन अच्छा लगा ।

Alpana Verma ने कहा…

रइस तरह
जलना होता है
कि कही
चिटक तक न लगे|
जीवन क्या ऐसा नहीं?
waah!waah! bahut hi khoobsurat!
jeevan darshan ko vyakt ek alg taraha se kiya hai.