फटे कपडे वाला
पसीने से लथपथ
बदहवास कहां दौडा जा रहा है,
रुक...
अबे रुक जा...।
बच के कहां जायेगा बे
बोल...क्यों भाग रहा है
और ये तेरे हाथ में....
क्या है, बता....
चोर कहीं के।
पकडे रखना
मुंडेर पर चढा था ये
वो तो अच्छा हुआ कि
दीये जल रहे थे
दिख गया...।
बोल बे..चुप क्यों है?
तेरे हाथ में क्या है?
अच्छा तेल सने हाथ...
कोई पकडे तो फिसल जाये
और भाग जाये...ऐं..।
तमाच...तमाच..तमाच
बता...
रो रहा है..दो और पडेंगे
तब बतायेगा क्या....।
दीया ?????.........?
"-सुना था
आज के दिन
दीया जला आंगन में रखते हैं...
लक्ष्मी आती है...
मां बीमार है, बाप का पता नहीं..
खाने को कुछ नहीं..
इतने सारे दीये जल रहे थे
सोचा एक उठा ले जाऊं..
माफ कर दे
हवलदारसाब....
और
ये ले बाबू तेरा दीया....।"
तमसो मा..ज्योतिर्गमय...........।
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ले तू भी
फेंक पत्ता..
पी ले कल का क्या भरोसा..
उपर क्या बतायेगा?
ऐं..
पी भी नहीं...।
पैसा क्या उपर ले जायेगा...?
पूजन...
किटी पार्टी में देर हो रही है
ओह ये लिपिस्टिक...
वाव..क्या लग रही है तू।
हां दीवाली है न।
ऐ...हम जा रहे हैं
घर की बत्तियां बुझा दे।
जी मेमसाब।
तमसो...मा..ज्योतिर्गमय.....।
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प्रेम का होना ...
2 दिन पहले
22 टिप्पणियां:
वाह अमिताभजी आपने समाज का आइना दिखा दिया
बहुत गहराई लिए हुए तीनो मुक्तक |
एक नन्हा दिया अपने आप को जलाकर अमावस कि रात को प्रकाशवान करता है |
दीपावली मंगलमय हो |
शुभकामनाये बधाई
वाह अमिताभ जी ! इसे कह्ते हैं लेखक की नज़र । इसी समाज के ये अंग हैं । इन्हे हम कैसे भूल सकते है । दिवाली की शुभकामनायें ।
आईना दिखाती -- सूक्ष्म दृष्टि वाली रचनाएँ.
झिलमिलाते दीपो की आभा से प्रकाशित , ये दीपावली आप सभी के घर में धन धान्य सुख समृद्धि और इश्वर के अनंत आर्शीवाद लेकर आये. इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए.."
regards
Amitabhji,
Shubh HO Deepavali.
Samaz ke do Satya Roop. Aapki Nazar, Aapki Lekhani, aour Aap Kamal ke hei.Kavita ka Yah ek alg andaaz dekha. kabhi Muktak, Kabhi Chhand, Kabhi rasmay rachna, Kabhi pryogvaadi Kavita, Kabhi gadhhy, lekh...Aour kya chahiye..KAMAAl hi to he yeh. Gambhir Aadmi ka Gambhir Chintan, To kabhi Alhadta ka Manoranjan, Soundary ho yaa shrangaar..dukh ho yaa haasya-vyangya..sab me Maharathi. Fir kese na koi Aapko pde bina rah sakta he.
Amitabh ji,
Aapko, meri Bhatiji ko aur aapke saare parivaar ko diwali ki (Saparivaar) hardik shubh kaamnaiyen...
Aaya to tha aapko diwali ki badhai dene par ja raha hoon aankehi num lekar...
...meri bhavukta ke vishay main to aap jaante hi hain.
:(
Aisa mat likha karo yaar...
Ek wo 'Pitaji' wali fir wo 'Kamiz' Aur ab Ye 'diwali'...
is blog main 3 diyon ki tarah chamakti nazm...
Koi comment , koi vyakha ab mayne nahi rakhti !!
Bus ek maun jo nirakar ki vyakha sa hai !!
vyakha ko vyaakhya padhein ...
:)
Bhaiyya,
bahut dino ke baad yahaan aayi.. anupasthiti ki maafi..
kavita ne dil nikaal ke rakh diya...
diwaali aise hi to beet jaati hai.. dikhaawe mein..andhere mein..shor mein.. aatma ko haasil kuchh nahi hota..wo to bas kasmaasati reh jaati hai jhoothe bharose mein dhakosle mein..
theek kaha bhaiyya aapne..
aapko aur aapke poore parivaar ko diwaali ki dhero badhaayi..
Aapki Behen
Kajal
निशि हटने दो ,तम् घटने दो ,घर घर ज्योति बुलाने दो !
नई किरण को नई लगन को ,उठकर दिया जलाने दो !!
कविवर नीरज की उक्त पंक्तिया आपके द्वारा रचित मुक्तक के प्रतुत्तर में सIदर प्रस्तुत है !
पुनः दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए !
आशी को स्नेह !
gahan avlokan karti rachanyen..aur
Samaaj ko aayeena dikhati bhi..
Amitabh ji,आप सहित पूरे परिवार को दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
diwali pe bahut emotional post likhi aapne ...cmnt mushkil hai....jaha jalega roshni bikherega..kisi diye ka apna koee mkaan nahi hota....
Ittefaaq hai..."Bikhare Sitare",is pe aajkee kadee kaa shershak," ek ye bhee diwali thi" hai!
"ek wo bhee diwali thee" is sheershak se malika shuru kee thee..!
Ek snehil nimantran hai, blog pe aane kaa...
Diwali kee anek shubh kamnayen!
बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,
इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की शुभकामना के साथ
ओम आर्य
समाज के रंगो को शब्दों के ब्रश से बखूबी से चित्र खींच दिया। कुछ रंगो से हम भी वाकिफ हो गए आज। इन रंगो को देखकर मन उदास सा हो जाता है। और जी करता है कि ................ पर जी में ही रह जाता है। काश कि हर घर में खुशहाली के दीपक जलते। खैर आज की रचना भी हमेशा की तरह बेहतरीन है।
बहुत ही सुंदर लिखा है आपने! आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
"-सुना था
आज के दिन
दीया जला आंगन में रखते हैं...
लक्ष्मी आती है...
मां बीमार है, बाप का पता नहीं..
खाने को कुछ नहीं..
इतने सारे दीये जल रहे थे
सोचा एक उठा ले जाऊं..
हां दीवाली है न।
ऐ...हम जा रहे हैं
घर की बत्तियां बुझा दे।
bahut acche vyangya hain dono hi..
दिलों की बत्तियां कभी की बुझ चुकी हैं
बाहर की बत्तियों के जलने से क्या होगा
बुझाने दे बुझाने दे इनके बुझने से
कुछ तो धन बचेगा,
मन में लग चुका है देखो टनों जाला
उजाला बन चुका है अंधेरे का निवाला
मन को पूरे कर डाला है स्याह काला
उजाले का पड़ा है अंधेरे से फिर पाला।
अमिताभ जी, आपकी कविता दृश्य के साथ साथ आइना दिखाती है.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आपको दीपावली की शुभकामनाएं !!
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- सुलभ सतरंगी
एक दम सचा आईना समाज का । आपको दीपावली की शुभकामनायें
"आओ मिल कर फूल खिलाएं, रंग सजाएं आँगन में
दीवाली के पावन में , एक दीप जलाएं आंगन में "
......दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ |
वाह अमिताभ जी .......... कमाल है आपकी पैनी नज़र और इस चेतना का .......... समाज में क्या क्या होता है और किसी भी चीज की प्रतिकिर्या को सोचने समझने के लिए जो संवेदनशील ह्रदय चाहिए वो आपके पास है ......... बहुत ही संवेदन शील रचनाएं हैं दोनों ही जुदा जुदा अंदाज़ हैं ......... आल्की नज़र के दो रूप .............
ये दीपावली आपके जीवन में नयी नयी खुशियाँ ले कर आये .........
बहुत बहुत मंगल कामनाएं .........
कर्म-कथ्य, द्रश्य या आइना जो भी है, बहुत गहरी चोट कर रही है.............
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
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