' स्वाईन फ्लु' तेज़ी से बढ्ने लगा है। मुम्बई के हालात कुछ ठीक नहीं कहे जा सकते। आप यदि अस्पताल की ओर देखें तो पायेंगे बदहवास लोगों की भीड और परेशान चेहरे हर कोने पर बिखरे पडे हैं। फ्लु की तादाद भले कम हो पर दहशत हरकिसी के सिर पर सवार है। क्या बाज़ार,क्या दफ्तर,क्या सडके और क्या घर...हर जगह स्वाईन के नाम का डर। सच और अफसोस यह भी है कि रोज़ इस बीमारी से कोई ना कोई मौत हो रही है। उफ्फ..
" न बाढ
न चिलचिलाती धूप
न कोई आकाल
न कोई भूचाल।
न खबर
न आतंक
और न ही कोई आहट,
बस, चुपचाप-दबे पांव
धडाम से फट पडा
खौफ का बादल,
टूट पडा
कोने-कोने पसर गया।
हाय,
शहर मेरा फिर डर गया।
शरारत
अणु से शैतान की,
जो फैला गया
शंका, शक़ और शोक।
वो प्रेम मिलन
होठों का चुम्बन
गलबहियां
सब शूल बन गई,
चुभने लगीं।
दूर होने लगे
लोग आपस में
शनै-शनै,
बहने लगी
बदहवासी।
हाय,
शहर में मेरे बसने लगी खामोशी।
हां,
नथूनों से होकर
गले में घुस
सीधे मस्तिष्क पर
करता वार।
लाचार, बीमार
बिलखता परिवार
परेशां सरकार
करती उपचार।
फिर भी
बढता जाता है ताप,
भोग रहे बच्चे, बूढे और जवान
न जाने किसका पाप?
हाय,
शहर को मेरे कौन दे गया शाप।"
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
4 दिन पहले
17 टिप्पणियां:
आपका दर्द अस्वाभाविक नहीं है हर कोई डरा हुआ है सच है यह अणु से शैतान की शरारत है मिलन और गलबहीयाँ विवाश्ताबश शूल बनी |ऐसे में शहर तो खामोश होगा ही |सर्कार परेशां जरूर है मगर जितना बन पड़ रहा है कर ही रही है तचना समनुकूल व भाबुक है
jagrukta ,aur dsro ke dard ke ahsas ko smetti ak samyik rachna .
asise me kya kre? ak abujh prshan ?
aapka ye post padh ke mera dil bhar aaya..
हाय,
शहर को मेरे कौन दे गया शाप।"
चिंता लाज़िमी है. बहुत अच्छी रचना हालात पर.
अत्यन्त सुंदर! श्री कृष्ण जनमाष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें!
Bhaiyya,
haan andar bahut si lehre uth rahi hain..likh lene se un lehro ka bakhubi pata lagta hai.. aur likhne se samasya ka aaabhaas hota hai.. main jab likh likh ke ant tak pahuchti hoon main samaadhaan tak pahuch jaati hoon..
aap jab mujhe padhte hain bahut achha lagta hai.. aasha hai aapki sehat bilkul achhi hai..
Shukriya bhaiyya,
Kajal
Samay se vartalap karti ek sashakt rachna.Shubkamnayen.
एक संवेदनशील इंसान के दर्द को बखूबी से कह दिया आपने। सच चारों तरफ डर अपना घर कर गया है। पर शाप जल्द ही इंसानी हौसंलो के आगे पस्त हो जाऐगा। और हाँ श्री कृष्ण जनमाष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें।
होठों का चुम्बन
गलबहियां
सब शूल बन गई,
चुभने लगीं।
दूर होने लगे
लोग आपस में
शनै-शनै,
बहने लगी
बदहवासी।
mitrvar har baar ek nai kafiyaat?
ek naya dard uker ke late ho, apna nahi ! samajik !!
samaj ka dard !!
aur phir baant dete ho use samaj ko...
kavita poori "democratic " hai:
From the people to the people by the people.
aur ye:
धडाम से फट पडा
खौफ का बादल,
टूट पडा
कोने-कोने पसर गया।
हाय,
शहर मेरा फिर डर गया।
darna vastav main sehar ki nai niyati ban chuka hai...
भोग रहे बच्चे, बूढे और जवान
न जाने किसका पाप?
हाय,
शहर को मेरे कौन दे गया शाप।"
...ye kewal swine flu ka hi dard nahi ek sehar ka satat dard hai...
aap ek mumbaikaar hai bhai isliye aapka dard bakhubi samajh raha hoon...
hamesha ki tarah badhiya rachan ke liye dil se dherron bhadhai.
swatantrata diwas ki subh kamaniyen
एक बीज,
ऊपर आने के लिए,
कुछ नीचे गया ,
ज़मीन के .
कस के पकड़ ली मिटटी ,
ताकि मिट्टी छोड़ उड़ सके .
६३ बरसा हुए आज उसे ….
…मिट्टी से कट के कौन उड़ा ,
देर तक ?
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
एक बीज,
ऊपर आने के लिए,
कुछ नीचे गया ,
ज़मीन के .
कस के पकड़ ली मिटटी ,
ताकि मिट्टी छोड़ उड़ सके .
६३ बरसा हुए आज उसे ….
…मिट्टी से कट के कौन उड़ा ,
देर तक ?
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
'शहर को मेरे कौन दे गया शाप।"
-ऐसा हीलगता है जैसे मुम्बई शहर को किसी की नज़र लग गयी है.
-मर्मस्पर्शी रचना है.
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
स्वाईन फ्लु.............. सच में किसी महामारी की तरह बढ़ता आ रहा है............. आपनी बहुत ही शशक्त तरीके से इस महामारी को चित्रित किया है........... सब डरे हुवे हैं............ और इस डर को मीडिया दुगनी ऊँचाइयों की तरफ ले जा रहा है........ आशा है जल्दी ही इसका कारगार उपाय निकल कर सामने आएगा........
यदि आपके सिस्टम पर गुलाबी कोंपलें ब्लॉग धीमे खुलता है तो आपको फायर फाक्स 3.5 या इंटरनेट एक्सप्लोरर 8.0 का प्रयोग करना चाहिए। आपको अपने सिस्टम की स्पीड आप्टीमाइज़ करनी चाहिए! पढ़ें: http://techprevue.blogspot.com
अपने आस-पास के दर्द को, सच को जिस तरह से आप अक्सर शब्दों में ढ़ाल कर कविता कह लेते हो, उसका कोई सानी नहीं अमिताभ!
बिखरे सितारे ! ७) तानाशाह ज़माने !
पूजा की माँ, मासूमा भी, कैसी क़िस्मत लेके इस दुनियामे आयी थी? जब,जब उस औरत की बयानी सुनती हूँ, तो कराह उठती हूँ...
लाख ज़हमतें , हज़ार तोहमतें,
चलती रही,काँधों पे ढ़ोते हुए,
रातों की बारातें, दिनों के काफ़िले,
छत पर से गुज़रते रहे.....
वो अनारकली तो नही थी,
ना वो उसका सलीम ही,
तानाशाह रहे ज़माने,
रौशनी गुज़रती कहाँसे?
बंद झरोखे,बंद दरवाज़े,
क़िस्मत में लिखे थे तहखाने...
Intezaar hai aapka..kuchh bikhare sitare...samet ne ke liye..
Aap diggaj lekhak/rachnakaar hain..itna kahungi,ki, kisee din aisee sashkt lekhan kala mujhe bhi hasil ho!
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