तुम्हारा निर्मल स्नेह
मेरे तपते हुए जीवन को
बर्फ सी ठंडक देता है,
मै थोडा शांत होकर
अपने 'होने' के भाव को
महसूस करने लगता हूँ।
तुम्हारे शब्द सुमन
मेरे रेगिस्तानी पथ पर
मखमली गलीचे का
निर्माण करते है,
और दूर होने के बावजूद
लक्ष्य के करीब होने का
अहसास होने लगता है।
तुम्हारा दिया गया
अप्रत्यक्ष मान- सम्मान
इस भीड़ भरी
स्वार्थी दुनिया में
मस्तक को गर्व से
ऊंचा उठाने में
टेका देता है,
और दंभ से भरा
आकाश मेरे कदमो में
लिपटने लगता है।
एक सच कहू-
तुम्हारा व्यवहार
और तुम मेरे लिए
ठीक वैसी हो
जैसे माँ का आँचल।
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
4 दिन पहले
14 टिप्पणियां:
आपके व्यक्तित्व से प्रभावित तो आपसे मिल कर हो ही गया था. किन्तु अब आपकी कविताओ ने मुझे आपकी रचनाधर्मिता से परिचय कराया. आपकी जिंदा दिली और धीर गंभीर छवि के बीच मस्तीभरे वो क्षण खूब याद आ रहे है. आपसा इंसान होना भी खुदा की देन है.
कुछ यूं भी सोचा जा सकता है परदेस में ...
is kavita ne mujhe meri yaad dila di.. maaf kijiyega agur aapka bhaav wo nahi tha... par mera aapke prati sneha kuchhh aisa hi hai amitabh ji..chehre par ek muskaan aa gayi ye padh kar.
in panktiyon ke liye bahut bahut dhanyawaad..
एक सच कहू-
तुम्हारा व्यवहार
और तुम मेरे लिए
ठीक वैसी हो
जैसे माँ का आँचल।
कोई माँ के बराबर सम्मान प् ले इस से बड़ी बात और क्या होगी ...बहुत खूब ...!!
क्या कहूँ इतनी सुन्दर रचना के लिए समझ नहीं आ रहा है!
---
तख़लीक़-ए-नज़र
अमिताभ भाई माँ जैसा कोई और नही। माँ पर जितना भी लिखा जाए वो कम ही है। और आपने बहुत ही सुन्दर भाव लिख दिये।
तुम्हारा दिया गया
अप्रत्यक्ष मान- सम्मान
इस भीड़ भरी
स्वार्थी दुनिया में
मस्तक को गर्व से
ऊंचा उठाने में
टेका देता है,
सच ऐसा ही महसूस होता है।
निर्मल स्नेह की अभिव्यक्ति है आपकी रचना....
प्रेम की शक्ति, प्रेम की ताकत को खूब उभारा है आपने इस रचना में
सुन्दर रचना के लिए बधाई
बड़ी ही सच्चाई से निर्मल और शाश्वत प्रेम
से साक्षात्कार करवाने में बिलकुल सफल रहे हैं
आप अपनी इस पावन रचना के माध्यम से ....
आपका रचना-संसार आपकी उज्वल छवि को
सभी पाठकों तक पहुंचा रहा है ....
मेरी हार्दिक शुभ-कामनाएं . . . .
---मुफलिस---
Dil ko kahin chua aapki is rachna ne.Badhai.
माँ के आँचल की खुशबू जहाँ हो,वहां की बंजर ज़मीन भी
आशान्वित होती है.....बहुत सुन्दर......
तुम्हारा निर्मल स्नेह
मेरे तपते हुए जीवन को
बर्फ सी ठंडक देता है,
मै थोडा शांत होकर
अपने 'होने' के भाव को
महसूस करने लगता हूँ। ....... यह एहसास अद्भुत है
... बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय रचना है, दिल को छू लिया और मन प्रसन्नचित हो गया।
अमित जी,,,
बहुत ही खूबसूरती से माँ का शब्द चित्रण किया है,,,
माँ का आँचल सुखद रहा,,,,
waah bhayi waah.........maa ki baat aati hai to ham vaise bhi sa-sammaan aankhe nam kar lete hain....!!
Beautiful expression and a wonderful truth of life that few lucky ones are blessed with ... and luckier ones know that they are blessed!
Nice portray!
God bless
RC
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