गुरुवार, 8 जनवरी 2009

अफ़सोस

फ़िर अफ़सोस .....
वो न मेरा हुआ
कौन किसका हुआ
सब हुआ तो
पराया हुआ
पूरा , समग्र जीवन भी
कंहा अपना हुआ
हुआ तो मृत्यु का हुआ
ओंर .....वह भी
कंहा किसकी हुई
फ़िर जीवन हुआ.....

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उलझन
हिसाब - किताब
कितना ,
गणित
ओंर समीकरण
बस उलझन
पूरा जीव

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वो

वो उसका
चुपके से आना
गली में मिलना
रोना- हँसना
बातें करना
वक़्त फे साथ
बिसर गया
बिसर गया
समग्र प्रेम संसार
सिमट गया
चार दीवारी में
समाज का पंछी बन
आजादी के अतीत को
याद करते हुए
पूरा जीवन
अब
पिंजरे में फडफडाते रहना
मिलने को तरसना
सिर्फ़ रोना
वक़्त के साथ
पसर गया

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Bhut khoob Amit ji, aapke blog ko padhkar bahut achchaa laga... Really GR8!

सुधीर महाजन ने कहा…
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सुधीर महाजन ने कहा…
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सुधीर महाजन ने कहा…

"Vo uske hatho ki mehandi ki khushbu, vo rumani shame jaha sanse mahaka karti thi ..uski bato ki chanchal titliya man bagiya me thirka karti thi.. kitne achchhe din the jab vo mere sath thi...."
us vo ki talash me....
hum bhi khade hai rah me...
sudhir Deweas wala

सुधीर महाजन ने कहा…
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