सोमवार, 21 जनवरी 2019

जनक - जननी

ये वो समय था जब
चारों दिशाएं मुट्ठी में थीं
सारे ग्रह -नक्षत्र नाक की सीध में थे
और धरा जैसे अपनी
कनिष्ठा पर घूम रही थी।
यकीन जानो
माता-पिता संग
ब्रह्माण्ड की समस्त महाशक्तियां
एकत्रित होकर वास करती है देह में
और निस्तेज जान पड़ता है इंद्र का सिंहासन
अप्रभ होता है उसका फैला साम्राज्य।
इसलिए प्रिये
जितना सम्भव हो सके
जगत के समस्त प्रपंच त्याग कर
रह लो साथ जनक - जननी के
कि
ईश्वर भी इस सुख से अधिक वंचित ही रहा है।
(टुकड़ा-टुकड़ा डायरी / 20 जनवरी 2019 )

बुधवार, 9 जनवरी 2019

ब्लैकहोल

उस वक्त जब
महानगर दूर हुआ करते थे
चाँद की तरह तब
मैंने धरती छोड़ी थी।
इस तथ्य को नकारते हुए कि
हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती।
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उबड़ खाबड़
आक्सीजन रहित उपग्रह के लिए
जीवन के एकमात्र ब्रह्माण्डी स्थल को त्यागना
इसरो या नासा का कोई अनुसंधान कार्य नहीं था।
वो टिमटिमाते स्वप्न को पकड़ने का दुस्साहस मात्र था।
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हाँ, ये सच है
अँधेरी रात में चमक दमक करते असंख्य तारों को
देख लोग मोहित अवश्य होते हैं
किन्तु अंनत ब्रह्माण्ड के शून्य में खोए हुए तारों का अकेलापन ,सूनापन कोई नहीं जानता जिनका
अपना कोई प्रकाश भी नहीं होता।
लौटना चाहता था मैं
ये जानकर कि दौड़ लगाने से आसमान छुआ नहीं जाता
बल्कि पेड़ बना जाता है
अपनी जड़ों पर खड़ा।
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अट्टाहास करता है देव
जीवन के रेगिस्तान में बनी लिप्साओं की मारीचिकाएं देख
भागते दौड़ते मानव के आसमान से ऊपर निकल जाने को देख कि वो जानता है
लौटना कठिन होता है
भटक जाना होता है
बस घूमते रह जाना यहाँ वहां
और इस बात से अनजान कि
कब कोई ब्लैकहोल सा दानव
एक सांस में निगल जाएगा।
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【टुकड़ा टुकड़ा डायरी/8 जनवरी 2019】

सारे, हाँ सारे के सारे

सारे, हाँ सारे के सारे
बदमाशों ने पहन ली है
सफेद कमीज़
ताकि न दिखे मैली बनियान।
सारे, हाँ सारे के सारे
बदमाशों की हैं तख्तियां
जिस पर लिखे हैं
अनेक उच्च पदनाम।
सारे, हाँ सारे के सारे
बदमाश जुट रहे हैं एक मंच पर
हाथों में हाथ डाले जिनके
मन में फूट रहे हैं लड्डू ।
सारे, हाँ सारे के सारे
बदमाश दियासलाई का
धंधा करने लगे हैं
ताकि भड़के विरोध अग्नि।
सारे, हाँ सारे के सारे ही तो।
26 des 2018

365 सिर

मोर से आकर्षक
सुनहरी दुम वाले
हरे,नीले बैंगनी रंग से लिपे पुते
किन्तु बड़े मुंह और भूखे पेट वाले होते हैं वर्ष।
राख से जन्मे।
इनका हाजमा इतना दुरुस्त होता है कि
जीवन के जीवन लील जाते हैं
और इतने नकटे कि जरा भी शिकन नहीं।
बावजूद खूँटी पर टाँगे जाते हैं
फीनिक्स के 365 सिर।
【टुकड़ा टुकड़ा डायरी/2 जनवरी2019】

रुको,

रुको,
ये जली हुई धरती का उज्जडपन
राक्षसी नहीं
बल्कि ये काला टीका बन
बुरी नज़र से बचाता है।
और यकीन मानो
जंगल नहीं होते जंजाल
घबराओ मत, आओ,
गहरे उतरो ,छाती पर चढ़ बैठो अँधेरे की
कि बस कुछ देर बाद ही
सूरज आसमान के सिर पर होगा
और तुम्हारा घर साफ दिखाई देगा।
【टुकड़ा टुकड़ा डायरी/6 जनवरी 2019】