रविवार, 26 जून 2016

अंततः


कितनी बलियां दे दी 
इच्छाओं की ,
आहूत किया श्रम 
और स्वेद कितना ,
जीवन कुंड इन समिधाओं से 
धधकता रहा 
किन्तु 
भाग्य था जो 
प्रसन्न नहीं हुआ।