गुरुवार, 1 जनवरी 2009

रोटी

रोटी के टुकड़े के लिए
दौड़ता बच्चा
लड़खडा कर गिर जाता है
और
वह टुकडा
एक कुत्ता पा जाता है
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रोजगार

जिसके भरोसे पर
बूडे माँ बाप है
वह हर
दर भटकने के बावजूद
बे रोजगार रह जाता है
खूबसूरत सी महिला
जिसके लिए जीवन एक फैशन है
रोजगार उसे
मिल जाता है
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प्रेम
गर प्रेम में पाना होता
तो पा जाता
किंतु फ़िर
आंसुओ का
स्वाद कैसे मिल पाता

1 टिप्पणी:

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…
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