" शक न करो
एतबार करो,
जिन्दगी की
नई शुरुआत करो।
दूर नहीं
मंजिले इश्क की,
फासले दरमियान
थोड़े कम करो।
तन्हाई में
डूबा मंज़र है,
आकर इसे
आबाद करो।
आंसुओ से
झुकती नहीं दुनिया,
जंग कर इसपे
राज़ करो।
आ जाओ अब
छोड़ के सबको,
खडा हूँ इन्तजार में
तुम देर न करो। "
9 टिप्पणियां:
अमिताभ जी बहुत अच्छी कविता लिखी है
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गुलाबी कोंपलें
सरकारी नौकरियाँ
एतबार नही होता
इसीलिए इंतजार होता है !
एतबार और इंतजार
का फासला
भी तो एक ज़ंग होता है !
अभी तीन पोस्टें पढ़ीं, इश्क-ए-ताकत (ताकत का इश्क) की जगह मेरे मुताबिक ताकत-ए-इश्क होना चाहिये (इश्क की ताकत).हो सकता है कि मेरा अंदाजा गलत हो.
bahut khoob amitabh ji, ishq ka ek rang utara hai aapne apne shabdont ke dwara.. parh kar anayaas hi ek muskaan aa gayi chehre par.. likhte rahiye..
दूर नहीं मंजिले इश्क की,
फासले दरमियान थोड़े कम करो
अमिताभ जी
सुंदर प्रस्तुति..........
अच्छी कविता है, दिल के ज़ज्बात खूब उतारे हैं आपने
वाहवा बहुत सुंदर कविता है भाई...
अच्छी रचना है। सकारात्मक भाव दिए हैं। जीवन के सौंदर्य के प्रवाह में शक बड़ा बाधक है, उसको स्थान देते ही 'मंज़िले-इश्क' अदृश्य हो जाती है। कविता के ऊपर चित्र भी बहुत सुंदर लगा।
आंसुओ से
झुकती नहीं दुनिया,
जंग कर इसपे
राज़ करो।
आ जाओ अब
छोड़ के सबको,
खडा हूँ इन्तजार में
तुम देर न करो। "
वाह क्या बात है वाकई दिल जीत लिया।
बहुत बढिया.... भावों को बहुत ही सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है आपने.....
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