गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

इश्तहार

आज मेरे मित्र की कविता आप सब के लिए। देवास मध्यप्रदेश के है मेरे मित्र सुधीर महाजन, जो कामर्स के प्रोफेसर है किन्तु हिन्दी में काफी कुछ बेहतर लिखते है, मेल पर उन्होंने मुझे कविता भेजी जिसे चाहता हूँ अपने ब्लॉग पर लाकर आप सब की नज़र में लाना। कृपया नज़रे इनायत करे।

"शराफत जो
पसरती थी
आँगन में
दिखाई देती है
अब वो
इश्तहारों में,
बांग भौर की
मुर्गा देता नहीं,
क्यों अजान
सुनाई देती नहीं?
वेदों की
ऋचाओ में
खेरियत
तलाशते संत भी
कर बैठे
इश्तहार
कोई नई बात नहीं।"

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

amitabhji, aapke mitra ki kavita me bhi ugra vichar he..
vese aap ke mitra he to vichaarvaan hona hi he..bhale hi subject comers ka ho, jivan to ek saa hi tahta he.

बेनामी ने कहा…

kya baat hai!! prachaar ke laalach ka anutha chitran hai.. bahut sundar..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सटीक लिखा है आज के संधर्भ में