रविवार, 22 जुलाई 2018

समझी क्या बारिश ?

कहा था
हांफ जाओगी।
कमर में पल्लू खोंस के झूमने लगी
इतना कि गोया कोई रिकार्ड बनाना हो।
जियादा नृत्य भी ठीक नहीं होता
वहां तो कतई नहीं जहाँ स्टेज न हो ।
जहाँ हैं वहां तुम नहीं झूमती।
लोग जो तुम्हारे नृत्य पर झूम रहे थे
दूसरे तीसरे दिन उठ कर जाने लगे।
तेज बाजे का शोर
धूम धड़ाका और बेतरतीब नाच
भाता नहीं है।
अब देखो न
आयोजकों से लेकर घटिया मंच तक की
पोल खोल गया
मगर तुम न रुकी।
अब कैसे तो थक चुकी हो
हांफ रही हो
मगर थिरकना गया नहीं है ।
दर्शक जा चुके हैं
सबके अपने काम होते हैं ।
तुम भी जाओ
वहां जहाँ तुम्हारे नृत्य की जरूरत है
वहां जहाँ तुम्हे बुला रहे हैं
वहां जहाँ प्यासे है तुम्हे देखभर लेने के
मायानगरी में लोग सिर्फ
मनोरंजन भर करते हैं
वो हुआ।
समझी क्या बारिश ?
(टुकड़ा टुकड़ा डायरी -11/07/18)

1 टिप्पणी:

Parul kanani ने कहा…

Thank you Amitabh sir. ..aapke words hamesha motivation detey hai...very grateful to you sir